बबूने के फूलों में कई औषधीय गुण हैं। इसी वजह से इसे रामबाण दवा भी कहा जाता है। कम सिंचित होने वाली जगहों पर भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।
हिमाचल प्रदेश में इस फूल की खेती चुनवी, नौहराधार, चौरास, चाढ़ना, पनोग, घंडूरी, शमोगा, देनामानल और बोगधार आदि क्षेत्रों में उगाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड में खासतौर पर हमीरपुर जिले में कम सिंचित होने वाली जगहों पर भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। इसे उत्तरप्रदेश के हमीरपुर और बुंदेलखंड जिलों की बंजर भूमि में भी बड़े स्तर पर उगाया जा रहा है। बबूने के फूलों में दिमाग को शांति पहुंचने वाली लाजवाब खुशबू होती है।
इसकी खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली है | जिस वजह से ज्यादातर किसान भाई कैमोमाइल की खेती के प्रति अधिक आकर्षित हो रहे है | कैमोमाइल के पौधों को किसी भी भूमि में ऊगा सकते है | यदि आप इसकी खेती उपजाऊ भूमि में करते है, तो अधिक मुनाफे वाली उपज प्राप्त कर सकते है | इसके पौधों पर जलवायु का कोई विशेष प्रभाव नहीं देखने को मिलता है | ठंडियों के मौसम में भी यह आसानी से वृद्धि कर लेते है | कैमोमाइल की खेती में भूमि का P.H. मान भी मायने नहीं रखता है |khalihannews.com
इसके पुष्प में औषधीय गुणों की मात्रा भरपूर होती है | पेट का रोग हो या त्वचा रोग सभी के लिए कैमोमाइल लाभकारी औषधि है | यह अनिद्रा, जलन, घबराहट और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याओ में भी लाभ पहुंचाता है | इसके अलावा इसके फूल को घाव, मोच, रैसेज और चोट के उपचार में भी इस्तेमाल करते है |
पहाड़ी क्षेत्रों में उगाये गए बबूने (कैमोमाइल) के पौधों से 10 से 12 बार फूलो का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, तथा मैदानी क्षेत्रों में 6 से 8 बार ही फूलो का उत्पादन मिल पाता है | एक एकड़ के खेत से तक़रीबन 28 से 30 कित्नो फूल की पैदावार मिल जाती है | इन फूलो को किसी छायादार जगह पर अच्छे से सुखा लेते है | इन सूखे हुए फूलो से पाउडर बनाया जाता है, फिर इसी पाउडर को चाय के रूप में इस्तेमाल कर सकते है |
एक एकड़ के खेत से मिले फूलो से 6 से 8 लीटर तेल प्राप्त हो जाता है | एक लीटर तेल का मार्केट भाव 40 से 45 हज़ार रूपए तक होता है | किसान भाई को एक एकड़ के खेत में कैमोमाइल की खेती करने के लिए 10 से 12 हज़ार रूपए तक खर्च करने होते है | जिसके बाद किसान कैमोमाइल चाय, बीज और तेल को बेचकर ढाई से तीन लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है |