परवल की तीन नई किस्में झारखंड के किसानों की तकदीर बदल सकती है। क्योंकि इसे लगाने में एक ही बार खर्च होता है। प्रति एकड़ इसे लगाने में जुताई, खाद और बीज मिलाकर लगभग पचास हजार रुपये का खर्च आता है, लेकिन इसके बाद किसान पांच साल तक इससे सब्जी ले सकते हैं। गंगा के तटीय इलको में फलने वाले परवल की बात करें तो यह जमीन में फलता है, जबकि नई विकसित किस्में लौकी की तरह फेल पर लटकती है। इसके कारण इसमें सड़न नहीं होती है और यह लंबे समय तक हरा रहता है। इसे दूर के बाजारों में भी आराम से पहुंचाया जा सकता है।
राज्य के 11 जिलों, रांची, रामगढ़, हजारीबाग, कोडरमा, खूंटी, गुमला, लोहरदगा समेत चाईबासा में परवल की खेती से किसानों को जोड़ा जाएगा। इस वेरायटी से किसान प्रति एकड़ 6-7 टन की पैदावार हासिल कर सकते हैं। साथ ही कहा की परवल के दाम कभी भी कम नहीं होते हैं ऐसे में इसकी खेती किसानों के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकती है।
झारखंड के किसानों को परवल की खेती से जोड़ने के लिए रांची की नामकुम स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पूर्वी प्रक्षेत्र पलांडू के वैज्ञानिकों ने परवल की तीन नई किस्में विकसित की है। इनके नाम स्वर्ण अलौकिक और स्वर्ण रेखा और स्वर्ण सुरुचि है, इसके अलावा एक और किस्म हैं, जो झारखंड समेत देश के पूर्वी राज्यों के लिए विकसित की गई है।
इस सब्जी पर पहले सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश का दबदबा था। अब झारखंड के किसानों द्वारा उगाए गए परवल देश के बाजारों में उपलब्ध होंगे। अब झारखंड में भी बड़े पैमाने पर परवल की खेती की जाएगी। इसकी शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर राज्य के 11 जिलों में की जा रही है। इस तरह से मैदानी इलाकों में होने वाली सब्जी की खेती अब झारखंड के पहाड़ी इलाकों में भी होगी। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत इसका संचालन किया जाएगा।