गन्ना नकदी की फसल है| पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित प्रदेश प्रदेश के जिन इलाकों में चीनी मिलें व गुड़-कोल्हू हैं, वहां किसानों की पसंद गन्ना की खेती है| हालाकि नकदी की फसल होने के बावजूद किसानों को तयशुदा 14 दिन में गन्ना मिलें गन्ना-मूल्य का भुगतन नहीं करती हैं|
गन्ना प्रजाति को-0238 में समय से पूर्व चोटी बेधक टॉप बोरर और पोक्का बॉइग आदि बीमारियां आने से ‘बीमार’ हो गई है। इससे गन्ना उत्पादन करीब 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर घट गया है। रिकवरी भी एक से दो प्रतिशत कम हुई है। बड़ी चुनौती इस प्रजाति में समय से पहले रोग आने के कारण है।
पिछले दस सालों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ सहारनपुर जिलों के किसान 90 प्रतिशत से अधिक रकबे में को-0238 गन्ना प्रजाति की बुआई कर रहे हैं। पिछले दो तीन सालों से को-0238 गन्ना प्रजाति चोटी बेधक (टॉप बोरर), पोक्का बोईंग और लाल सड़न रोग समय से पूर्व आ गया है।
एक ही प्रजाति को-0238 की अधिक बुवाई से कीट और रोगों का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। इन सभी कीट और रोगों के कारण प्रजाति की पैदावार में गिरावट भी आई है। पैदावार में गिरावट आने से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। किसानों को गन्ना प्रजाति में बदलाव कर देना चाहिए।
करीब 28 साल पहले पउप्र के जिलों में 767, 1148, को-64, 88230 गन्ना प्रजाति किसान बो रहे थे। बाद में गन्ने की अगेती प्रजाति के रुप में को-0238 आई। वजन, गन्ने की मोटाई, और गन्ना रिकवरी अधिक होने से जिले की चीनी मिलों ने को-0238 प्रजाति का गन्ना बोने के लिए किसानों को प्रेरित किया। पिछले 15 सालों में को-0238 गन्ना प्रजाति ने किसान और चीनी मिल दोनों को मालामाल किया है। अब गन्ना विभाग भी इसे ‘बीमार’ प्रजाति घोषित कर चुका है।
ये प्रजातियां हैं विकल्प
कोयंबटूर और करनाल में विकसित की गई प्रजाति को-0118 व 15023 बहुत अच्छा उत्पादन देने वाली प्रजाति है।
इसी तरह लखनऊ अनुसंधान संस्थान में विकसित प्रजाति को-लख-14201 भी अच्छा उत्पादन देने वाली प्रजाति है। कोशा-13235 शाहजहांपुर में विकसित प्रजाति उत्पादकता के क्षेत्र में अग्रणी है। किसानों को इन प्रजातियों का भी प्रयोग करना चाहिए। बसंतकालीन बुवाई वर्ष-2023 में सभी किसानों को अधिक से अधिक क्षेत्रफल में गन्ना प्रजाति को-0118, को-15023, कोशा-13235 व कोलख-14201 की बुवाई ट्रेंच विधि से करनी चाहिए।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि क्षेत्र में प्रजाति बदलाव के साथ नई प्रजाति को अपनाकर क्षेत्र में गन्ने की उत्पादकता को बरकरार रखना चाहिए।