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कर्णप्रयाग के घरों में भी जोशीमठ की तरह दरारें, खेत-खलिहान भी धँस रहे

उत्तराखण्ड के कई जिलों के लोग दहशत में हैं| लोग अपने परिवार के साथ इलाका छोड़ रहे हैं| लोगों का कहना है कि सरकारी ‘योजनाओं’ पहाड़ की दहशत का बड़ा कारण है|

जोशीमठ के बाद अब कर्णप्रयाग में भी लोगों के घरों में दरारें पड़ने की घटनाएँ सामने आ रही हैं। भूमि धँसने और भूस्खलन के कारण इस पहाड़ी राज्य के कई क्षेत्रों में पड़ रही दरारों से लोग भय की स्थिति में जी रहे हैं। वे किसी प्राकृतिक आपदा को लेकर भयभीत हैं।

कर्णप्रयाग के बहुगुणानगर, सीएमपी बैंड और सब्जी मंडी के ऊपरी भाग में रहने वाले 50 से अधिक परिवारों के घरों में दरारें आ गई हैं। यहाँ बरसात के मौसम में भू-धंसाव देखने को मिला था। अब जोशीमठ की तरह यहाँ के घरों में भी दरारें पड़ने लगी हैं।

इसी तरह उत्तरकाशी जिले के मस्ताड़ी गाँव भी 31 वर्षों से भू-धंसाव की मार झेल रहा है। यहाँ के घर ही नहीं, रास्ते और खेत-खलिहान भी धँस रहे हैं। साल 1991 में आए भूकंप के बाद से यह स्थिति शुरू हुई थी। भूकंप में गाँव के लगभग सभी मकान ध्वस्त हो गए थे। इसके बाद साल 1997 में प्रशासन ने यहाँ का भूगर्भीय सर्वेक्षण कराया था।

जोशीमठ में भू-धंसाव और मकानों में दरारों की समस्या अभी खत्म भी नहीं हुई है कि अब टिहरी जिले के नरेंद्रनगर के अटाली गांवों के खेतों और मकानों में दरारें पड़ने लगी हैं. जो समय के साथ-साथ गहरी होती जा रही है| वहीं, इन दरारों की वजह से ग्रामीण दहशत में हैं| उन्होंने सरकार से हर परिवार में एक व्यक्ति को नौकरी, 10 गुना मुआवजा और व्यासी के समीप विस्थापन करने की मांग की है|

उत्तराखंड के जोशीमठ क्षेत्र में हो रहे भू-धंसाव से लोगों को चौतरफा खतरा उत्पन्न हो गया है। मकान और खेतों में दरारें आने के बाद अब हाईटेंशन लाइन के खंभे भी तिरछे हो गए हैं। इससे आसपास के घरों को खतरा पैदा हो गया है। साथ ही खेतों में लगाए माल्टे व सेब के पेड़ दरार गहरी होने के कारण गिरने शुरू हो गए हैं।

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के लिए बनाई जा रही सुरंग निर्माण से जुड़ा हुआ है| जिसकी वजह से अटाली गांव की कृषि भूमि सुरंग निर्माण की जद में आ चुकी है और मकानों पर दरारें पड़ती जा रही हैं| बता दें कि इन दिनों विधानसभा नरेंद्रनगर की पट्टी दोगी के अटाली गांव के नीचे से होकर जाने वाली रेलवे लाइन सुरंग निर्माण का कार्य जोरों पर हैं| खेतों में सिंचाई करते वक्त अटाली के ग्रामीण उस वक्त सकते में आ गए, जब उन्होंने अपने खेतों में लंबी दरारें पड़ी देखीं|

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