झारखंड के वन क्षेत्रों की मिट्टी में नाइट्रोजन की भारी कमी पाई गई है। रांची स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी (आईएफपी) द्वारा तैयार वन मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एफएसएचसी) रिपोर्ट के अनुसार वन क्षेत्रों की करीब 69 प्रतिशत मिट्टी पौधों के विकास के लिए अनुपयुक्त हो गई है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर तैयार रिपोर्ट में चिंताजनक नतीजे सामने आए हैं। राज्य की वन भूमि में नाइट्रोजन की एक बड़ी कमी है। बता दें, गैर-अवक्रमित वन में नाइट्रोजन की उपस्थिति लगभग 258 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए, लेकिन यह 140 के औसत के करीब पाई गई है।
आईएफपी के मुख्य तकनीकी अधिकारी शंभू नाथ मिश्रा ने बताया कि अधिकांश वन प्रभागों में 160 किलोग्राम और 180 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के बीच नाइट्रोजन की उपस्थिति है। कुछ क्षेत्रों में यह आंकड़ा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के करीब पहुंच गया है।
एफएसएचसी रिपोर्ट जारी करने वाला झारखंड देश का पहला राज्य बन गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के 31 क्षेत्रीय वन प्रभागों में 1,311 स्थानों से मिट्टी के 16,670 नमूने लिए गए। अधिकारियों ने बताया कि नाइट्रोजन की कमी के घने और मध्यम वन कम हो रहे हैं। उन्होंने बताया, प्रति हेक्टेयर 225 किलोग्राम यूरिया का उपयोग करके 90 किलोग्राम नाइट्रोजन की कमी को पूरा किया जा सकता है।