जैविक खेती, सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक , अपने उत्पादों को बिचौलियों की बजाय सीधे बाज़ार में बेचना, कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो आपको एक सफल कृषि उद्यमी बना सकता है। इराव्वा शिवानंद मठपति की तरह। इराव्वा शिवानंद ने एक सफल महिला उद्यमी बनकर अपने इलाके में न सिर्फ़ मिसाल पेश की है, बल्कि दूसरे किसानों को भी आत्मनिर्भरता के साथ अधिक मुनाफ़ा कमाने के लिए प्रेरित किया।
कर्नाटक के रामदुर्ग तालुका के मुदकवि गांव की रहने वाली इराव्वा शिवानंद मठपति एक गरीब किसान परिवार से आती हैं। वह अपने पति के साथ बंजर और पथरीली भूमि पर जी तोड़ मेहनत करतीं। सिंचाई की भी सुविधा नहीं थी।
अपनी 10 एकड़ ज़मीन पर वह फलों के साथ ही कई अन्य फसलों की भी खेती करती थीं, लेकिन बिचौलियों की वजह से उन्हें इसकी सही कीमत नहीं मिल पाती थी। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। इसके बाद उन्होंने अपनी फसल और मूल्य वर्धित उत्पादों को खुद ही बेचने का फैसला किया। बस फिर क्या था, कुछ ही समय में वह गरीब किसान से सफल महिला उद्यमी बन गईं।
इन चीज़ों की करती हैं खेती इराव्वा शिवानंद मठपति ने अपने 10 एकड़ के फ़ार्म में 300 आम, 300 चीकू (सपोता), 35 जामुन, 200 सिट्रस के पेड़ के साथ ही सहजन, अमरूद, महोगनी, करीपत्ता, अनार, चंदन आदि के पेड़ लगाए हुए हैं।
बारिश के पानी को जमा करने के लिए पेड़ों की पंक्तियों के बीच खाइयां बनाई हुई हैं। पूरे खेत में ड्रिप सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है और बारिश के पानी को जमा करने के लिए एक तालाब भी बना हुआ है।
उनका फ़ार्म आत्मनिर्भरता की बेहतरीन मिसाल है। यहां बायोडाइजेस्टर टैंक, वर्मीकंपोस्ट गड्ढे, बायोगैस प्लांट, पॉवरटिलर, अचार ले जाने के लिए वाहन, अचार बनाने की इकाई अचार स्टोर करने के लिए गोदाम आदि सब कुछ फ़ार्म में ही बना हुआ है। इराव्वा शिवानंद मठपति जैविक खेती के लिए ज़रूरी बीज से लेकर खाद, बीजमृत, जीवामृत आदि का उत्पादन खुद ही करती हैं, जिससे उन्हें किसी चीज़ के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं होना पड़ता है। साथ ही अधिक मुनाफ़े के लिए वह मंडी, ग्रामीण हाट और ई-मार्केटिंग के ज़रिए अपनी फसल और उत्पाद सीधे तौर पर बेचती हैं।
ATMA समूह से मिली ट्रेनिंग ने न सिर्फ़ उन्हें जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाया और उन्हें खेती की कई अलग-अलग तकनीकों के बारे में पता चला। वह बेलगाम जिले में ATMA समूह की ज़िला स्तरीय किसान सलाहकार समिति की सदस्य भी हैं।
सालाना 7 लाख की कमाई जैविक रूप से फलों और सब्जियों की खेती और अचार, चटनी, स्प्रेड जैसे मूल्य वर्धित उत्पादों के उत्पादन के ज़रिए वह सालाना करीब 7 लाख की कमाई कर रही हैं।
कई पुरस्कारों से सम्मानित 2011 में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ ने उन्हें श्रेष्ठ कृषि महिला पुरस्कार से सम्मानित किया। 2018 में आईसीएआर और दूरदर्शन द्वारा उन्हें राष्ट्रीय स्तर की महिला किसान का पुरस्कार दिया गया। कई राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय के छात्र उनके खेत का दौरा करते हैं। वह अपने गांव और आसपास के इलाकों में भी जैविक खेती की तकनीक का प्रसार कर रही हैं।