काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के विज्ञानियों द्वारा तैयार की गई फोर्टिफाइड गेहूं की किस्म मालवीय-838 (एचयूडब्ल्यू-838) को राष्ट्रीय स्तर पर सर्वोत्तम घोषित किया गया है। गेहूं की इस प्रजाति में 41 पीपीएम जिंक तो हैं ही, यह बांग्लादेश तक पहुंच गई दुनिया में तेजी से बढ़ती गेहूं के पौधों की बीमारी व्हीट ब्लास्ट एवं अन्य रोगों से पूर्णतया सुरक्षित है|
गेहूं की इस किस्म के मुख्य अनुसंधानकर्ता प्रो. वीके मिश्र ने बताया कि इसकी पैदावार 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। आमतौर पर बहुत अच्छी किस्म के गेहूं की उपज 45-55 क्विंटल प्रति हेक्टयर की ली गई है। गेहूं की आम किस्म की में जहां जिंक की मात्रा 25 से 30 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) होती है, वहीं इस प्रजाति में जिंक 41 पीपीएम मौजूद है। जिंक की पर्याप्त मात्रा शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है तथा जिंक कमी से होने वाले लगभग 200 प्रोटीनों की कमी पूरा कर कुपोषण दूर करता है|
प्रो. मिश्र बताते हैं कि पूरी दुनिया में गेहूं के पौधों में तेजी से व्हीट ब्लास्ट नामक बीमारी बढ़ रही है। इसमें गेहूं की बालियां तो खूब हरी-हरी लहलहाती दिखती हैं लेकिन उनमें दाने नहीं पड़ते। इस बीमारी का बढ़ना गेहूं उत्पादन पर भारी संकट के रूप में देखा जा रहा है।
पड़ोसी देश बांग्लादेश तक यह बीमारी ब्राजील के रास्ते पहुंच चुकी है। देश की सरकार ने सीमावर्ती किसानों को पांच किलोमीटर के दायरे में गेहूं की बोआई करने से मना कर रखा है। उन किसानों को इसके बदले मुआवजा दिया जा रहा है ताकि यह बीमारी हवा के माध्यम से अपने देश में न पहुंच सके।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने इस किस्म के बीजों को बीमारी प्रतिरोधक क्षमता की जांच के लिए बांग्लादेश भेजा। वहां बोआई के उपरांत पता चला कि किस्म व्हीट ब्लास्ट व अन्य बीमारियों से 100 प्रतिशत सुरक्षित है। प्रो. मिश्र बताते हैं कि देश में बोई जाने वाली गेहूं की 80 प्रतिशत किस्में व्हीट ब्लास्ट से सुरक्षित नहीं हैं।
प्रो. मिश्र बताते हैं इस किस्म को आइसीएआर द्वारा सारे परीक्षणों और मानकों पर खरा उतरने के बाद सुरक्षित पाया गया।