सोयाबीन स्वास्थ्य के लिए एक बहुउपयोगी खाद्य पदार्थ है। सोयाबीन में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा पायी जाती है, जिस वजह से यह मानव शरीर के लिए अधिक लाभकारी होती है। है। विश्व का 60 फीसदी सोयाबीन अमेरिका में पैदा होता है। भारत मे सबसे अधिक सोयाबीन का उत्पादन मध्यप्रदेश करता है। मध्य प्रदेश, इंदौर में सोयाबीन रिसर्च सेंटर है|
वैज्ञानिकों की सलाह मानें तो किसानों को सोयाबीन की बोवनी उपयुक्त समय पर ही करना चाहिए। इसके लिए किसानों को मानसून आने के बाद न्यूनतम 100 मिमी वर्षा होने पर ही सोयाबीन की बुआई करनी चाहिए जिससे उगी हुई फसल को सूखा/कम नमी के कारण किसी प्रकार का नुक़सान नहीं होता है|
विपरीत परिस्थितयां जैसे–अधिक या कम वर्षा की स्थिति में भी सोयाबीन फसल में इसके द्वारा अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं | इस विधि में प्रत्येक दो पंक्ति के बाद एक गहरी एवं चौड़ी नाली बनती है, जिससे अधिक वर्षा की स्थिति में वर्षा जल इन नालियों के माध्यम से आसानी से खेत से बाहर निकल जाता है और फसल ऊँची मेड पर रहने के कारण सुरक्षित बच जाती है |
धान के साथ ही साेयाबीन भी खरीफ की मुख्य फसल है| जिसको लेकर किसान और कृषि विभाग अभी से योजना बनाने में जुटे हैं| असल में उत्पादन और आय की दृष्टि से खरीफ का मौसम महत्वपूर्ण होता है| जिसमें कम उत्पादन लागत और अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कृषि विभाग किसानों की मदद करता है|
इसी कड़ी में महाराष्ट्र के कृषि विभाग ने सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को लिए एडवायजरी जारी की है| जिसके तहत विभाग ने किसानों को घरेलू बीजों से ही सोयाबीन करने की सलाह दे रहा है|
सोयाबीन की एमएसीएस 1407 नाम की यह नई विकसित किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है|
फुले संगम केडीएस 726 यह किस्म 2016 में महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय महाराष्ट्र द्वारा अनुशंसित सोयाबीन की किस्म है। इसका पौधा अन्य पौधे के मुकाबले ज्यादा बड़ा और मजबूत है। 3 दानों की फली है इसमें 350 तक के फलिया लगती है। इसका दाना काफी मोटा है, जिसके कारण इससे उत्पादन में दोगुना फायदा होगा। यह किस्म महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में अधिकतर लगाई जाती है। इस किस्म को तांबरा रोग के लिए कम संवेदनशील किस्म के रूप में अनुशंसित किया जाता है, यह किस्म लीफ स्पॉट और स्कैब के लिए भी अपेक्षाकृत प्रतिरोधी है। पांच राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इस किस्म की खेती के लिए सिफारिश की जाती है। यह किस्म पत्ती खाने वाले लार्वा के प्रति कुछ हद तक सहिष्णु, लेकिन तांबरा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। सोयाबीन की इस किस्म की परिपक्वता अवधि 100 से 105 दिनों की होती है। इस किस्म की उत्पादन 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और फुले संगम केडीएस 726 की हाईटेक तरीके से खेती करने पर 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देखी गई है। इस किस्म की तेल की मात्रा 18.42 प्रतिशत है।
सोयाबीन की प्रताप सोया-45 (आरकेएस-45 ) किस्म ये किस्म 30 से 35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती है। सोयाबीन की इस किस्म में तेल की मात्रा 21 प्रतिशत है तथा प्रोटीन की मात्रा 40-41 प्रतिशत होती है। सोयाबीन की इस वैरायटी की बढ़वार काफी अच्छी होती है। इसके फूल सफेद होते हैं। इसके बीज का रंग पीला होता और भूरे रंग का हिलम होता है। यह किस्म राजस्थान के लिए अनुशंसित है। यह किस्म 90-98 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म पानी की कमी को कुछ हद तक सहन कर सकती है। वहीं सिंचित क्षेत्र में उर्वरकों के साथ अच्छी प्रतिक्रिया देती है। यह किस्त यलो मोजेक वाइरस के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधी है।
सोयाबीन की जेएस 2069 किस्म की बुवाई का उचित समय 15 जून से 22 जून तक का होता हैं। इस किस्म से सोयाबीन की बुवाई करने के लिए 40 किलों बीज प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। इस किस्म से एक हेक्टेयर में करीब 22 -26 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म से सोयाबीन की फसल 85 -86 दिनों में तैयार हो जाती हैं।
सोयाबीन की एमएयूएस 81 (शक्ति) 93-97 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 33 से 35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 20.53 प्रतिशत होती है तथा 41.50 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इस किस्म के पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। फूलों का रंग बैंगनी होता है तथा इसके बीज पीले आयताकार होते हैं। यह किस्म मध्य क्षेत्र के लिए उपयुक्त पाई गई है।
सोयाबीन की प्रताप सोया-1 (आरएयूएस 5) सोयाबीन की ये किस्म 90 से 104 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से करीब 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म में तेल की मात्रा 20 प्रतिशत पाई जाती है। इसमें 40.7 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है। सोयाबीन की इस किस्म के फूल बैंगनी होते हैं। जबकि बीज पीले होते हैं। ये किस्म गर्डल बीटल, स्टेम फ्लाई तथा डिफोलीएटर के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। यह किस्म उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिए अच्छी बताई गई है।