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हिमाचल प्रदेश : अब आलू के बीज बोकर ही हरे-भरे हो जायेंगे खेत

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) शिमला ने पहली बार आलू बीज (ट्रू पोटेटो सीड) तैयार किया है। इसे निजी कंपनियों के जरिये किसानों को उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया है। बीज से पहले खेतों में पनीरी तैयार करेंगे, उसके बाद तैयार पौध रोपी जाएगी।

नया आलू बीज देश के पहाड़ी, पूर्वोत्तर और पूर्वी मैदानी राज्यों को लक्षित कर बनाया गया है। कंद वाले आलू बीज के मुकाबले इस बीज पर लागत बेहद कम हो जाएगी। अभी तक आलू बोने के लिए अंकुरित साबुत आलू की जरूरत होती थी| इस बीज की तकनीक को सीपीआरआई पटना ने विकसित किया है।

सीपीआरआई के निदेशक डॉ. एनके पांडेय के अनुसार इसका उपयोग रोग मुक्त बीज उत्पादन के लिए किया जाता है। यह विषाणु मुक्त बीज उत्पादन की तकनीक है। पारंपरिक तरीके से रोपण के लिए उपयोग किए जाने वाले कंदों की लागत बहुत अधिक होती है, जबकि नर्सरी में अगले वर्ष रोपण के लिए कंदों का उत्पादन अपेक्षाकृत बहुत कम होता है।

आलू का मूल बीज यानी ट्रू पोटेटो सीड (टीपीएस) के भंडारण की समस्या नहीं रहती है। इसकी ढुलाई आसानी से हो जाती है। देश के जिन दुर्गम क्षेत्रों में आलू की कंदें पहुंचानी कठिन रहती हैं, वहां टीपीएस आसानी से पहुंचाया जा सकता है। देश के पूर्वोत्तर के किसानों में बीज लोकप्रिय हो रहा है।

सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है तथा इसके बाद क्रमशः पश्चिम बंगाल तथा बिहार का नाम आता है। वहीं यदि दुनिया की बात की जाए तो चीन आलू की सबसे अधिक उत्पादन क्षमता रखने वाला देश है। आलू के उत्पादन में भारत दुनिया के सभी देशों में दूसरा स्थान रखता है। आलू इतना लोकप्रिय हैं कि विश्व में मक्का, गेहूँ और चावल के बाद सबसे अधिक खपत आलू की ही होती है।

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