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खेती-किसानी में पुरुषों से आगे हैं भारतीय महिलाएं

हर साल 8 मार्च को दुनिया भर में विश्व महिला दिवस मनाया जाता पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बराबरी का दर्जा हासिल करने वाली महिलाएं खेतों में भी अपनी मेहनत के बूते आगे हैं दुनिया में महिला किसानों के हालात भले ही बहुत बेहतर ना हो लेकिन वह श्रम के मामले में पुरुषों से कहीं आगे हैं |ऐसे में महिला किसान की खेती किसानी में बड़ी भूमिका को देखते हुए भारत में 15 अक्टूबर को पहली बार महिला किसान दिवस मनाया जा रहा है।

दुनियाभर में ग्रामीण महिलाओं का कृषि क्षेत्र में योगदान 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है। मतलब, पूरे विश्व खाद्य उत्पादन में से आधे उत्पादन का योगदान ग्रामीण महिलाओं का है। खाद्य और कृषि संगठन के आंकड़ों की मानें तो कृषि क्षेत्र में कुल श्रम में ग्रामीण महिलाओं का योगदान 43 प्रतिशत है, वहीं कुछ विकसित देशों में यह आंकड़ा 70 से 80 प्रतिशत भी है। इनमें एक बड़ी बात यह भी है कि वे चावल, मक्का जैसे अन्य मुख्य फसलों की ज्यादा उत्पादक रही हैं, जो ग्रामीण गरीब भोजन के रूप में 90 प्रतिशत तक सेवन करते हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि पूरी दुनिया में महिलाएं ग्रामीण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के विकास की रीढ़ हैं।

खाद्य और कृषि संगठन के आंकड़ों की मानें तो वैश्विक स्तर पर आधे से ज्यादा खाद्य उत्पादन में ग्रामीण महिलाओं की भूमिका है। अफ्रीका में 80 प्रतिशत कृषि उत्पादन छोटे किसानों से आता है, जिनमें अधिकतर ग्रामीण महिलाएं हैं। गौरतलब है कि महिलाओं का कृषि क्षेत्र में कार्यबल का सबसे बड़ा प्रतिशत शामिल है, मगर खेतिहर भूमि और उत्पादक संसाधनों पर महिलाओं की पहुंच और नियंत्रण नहीं है। हालांकि पिछले 10 सालों में कई अफ्रीकी देशों ने महिलाओं के भूमि अधिकार स्वामित्व को मजबूत करने के लिए नये भूमि कानून को अपनाया है। इस पहल ने कृषि क्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति को काफी हद तक मजबूत किया है|

भारत में कृषि क्षेत्र में महिलाओं का अहम योगदान है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कृषि क्षेत्र में कुल श्रम की 60 से 80 फीसदी हिस्सेदारी ग्रामीण महिलाओं की है। एफएओ की एक शोध के अनुसार, हिमालय क्षेत्र में एक ग्रामीण महिला प्रति वर्ष औसतन 3485 घंटे प्रति हेक्टेयर काम करती हैं, वहीं पुरुष औसतन 1212 घंटे काम करते हैं। इस आंकड़े से कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को आंका जा सकता है और महिलाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। इतना ही नहीं, कृषि कार्यों के साथ ही महिलाएं मछली पालन, कृषि वानिकी और पशुपालन में भी अपना योगदान दे रही हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और डीआरडब्लूए की ओर से नौ राज्यों में किये गये एक शोध से पता चलता है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 75 फीसदी तक रही है। इतना ही नहीं, बागवानी में यह आंकड़ा 79 प्रतिशत और फसल कटाई के बाद के कार्यों में 51 फीसदी तक ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी है। इसके अलावा पशुपालन में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत और मछली उत्पादन में यह आंकड़ा 95 प्रतिशत तक है। सिर्फ इतना ही नहीं, नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के आंकड़ों की मानें तो 23 राज्यों में कृषि, वानिकी और मछली पालन में ग्रामीण महिलाओं का कुल श्रम की हिस्सेदारी 50 है। इसी रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और बिहार में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत 70 प्रतिशत रहा है।

इसके अलावा पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु और केरल में महिलाओं की भागीदारी 50 फीसदी है। वहीं, मिजोरम, आसाम, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नागालैंड में यह संख्या 10 प्रतिशत है। शोध के अनुसार, पौध लगाना, खरपतवार हटाना और फसल कटाई के बाद ग्रामीण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी शामिल है।

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