बस्तर में कॉफी के उत्पादन से जहां किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं| स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है| छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में काफी हद तक पलायन रुका है। कोलेंग और दरभा की पहाडिय़ों पर उगाई जा रही बस्तर कॉफी। 2017 में प्रायोगिक तौर पर उद्यानिकी विभाग द्वारा 20 एकड़ में शुरू की गई कॉफी की खेती अब किसानों के खेतों तक पहुंच चुकी है।
परियोजना के माध्यम से 2017 से लेकर अब तक 60 लाख रुपए का रोजगार दिया जा चुका है। यहां काम करने वाले मजदूर सालाना 38 से 45 हजार रुपए तक की आय प्रति परिवार प्राप्त करते हैं। आज दरभा जैसा सुदूर ग्रामीण आदिवासी क्षेत्र बस्तर की कॉफी का गढ़ बन रहा है और इसकी पहचान कॉफी की खेती के लिए हो रही है। बस्तर की कॉफी की एक खास बात यह भी है कि यह पूरी तरह से फर्टिलाइजर मुक्त है|
वर्ष 2018 मे की गई काफी के पौधे अब फल देने लगे हैं| उम्मीद की जा रही है कि इस साल फरवरी में लगभग 15 क्विंटल कॉफी का उत्पादन हो सकता है। दरभा में 20 एकड़ में खेती की सफलता को देखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इसे किसान के खेतों तक पहुंचाना चाहते थे| इसीलिए राज्य सरकार और जिला प्रशासन की पहल से बस्तर जिले में 200 एकड़ में कॉफी की खेती की जा रही है।
बस्तर कॉफी का उत्पादन किसानों के द्वारा, प्रोसेसिंग स्व सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा और मार्केटिंग बस्तर कैफे के द्वारा किया जा रहा है। जिससे किसानों को उत्पादन का सही दाम मिलेगा, बिचौलियों से किसान बचेंगे और स्व सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक लाभ मिलेगा।