अब से ठंड में ही लीची का स्वाद लोगों को मिलने लगेगा। जी हां अब जनवरी में ही बिहार के बाजार में लीची बिकेगी। यह लीची तमिलनाडु से यहां आएगी। वैसे तो मई से जून तक लीची का मौसम रहता है लेकिन लोग इसका मजा अब जनवरी से ही उठा सकते हैं। लीची से किसान अच्छी कमाई करने में सफल होंगे।
लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर के निदेशक डा. विकास दास अगले सप्ताह तमिलनाडु जा रहे हैं। डा.दास ने बताया कि वहां पर जनवरी में लीची फलती है।
बिहार में मई से जून तक लीची का मौसम रहता है। तमिलनाडु में कौन सी वेरायटी है जो जनवरी में फल रहा है। इसकी जानकारी और लीची के रकबा का विस्तार करने के लिए वह तमिलनाडु जा रहे हैं।
बताया कि वहां पर पहले से ही लीची होती, लेकिन उसका रकबा कम है। बताया कि दो संभावना देखेंगे एक वहां पर जो लीची का पेड़ है, वह किस वेरायटी की है। उसे यहां पर लाकर विकसित किया जा सकता या नहीं। दूसरी यह संभावना देखी जाएगी कि यहां की जो शाही, चाइना व अन्य वेरायटी है, उसका वहां पर रकबा बढ़ाने की क्या संभावना है। वहां से आने के बाद ही इस संबंध में रणनीति बनाकर काम होगा।
अगर सबकुछ सही रहा तो आने वाले दिन में जनवरी महीने में वहां से लीची लाकर बाजार में उपलब्ध कराने की पहल होगी। यहां के लीची उत्पादक किसान व व्यापारी को इसके लिए तैयार किया जाएगा।
मिली जानकारी अनुसार बताया कि तमिलनाडु व महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व अरुणाचल प्रदेश, सिक्कम व झारखंड, उत्तराखंड व उतर प्रदेश में लीची के पौधे भेजे गए हैं। निदेशक ने बताया कि शाही लीची को जिओ टैग मिला है। हमारा लक्ष्य शाही लीची के निर्यात नेटवर्क को मजबूत करना है।
देश से बाहर जब लीची का निर्यात होगा तो किसानों को अच्छी कमाई होगी। इसके लिए कृषि विभाग, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड और अन्य संस्थाओं से संपर्क किया जा रहा है। जहां से किसान की मांग आ रही है, वहां पौधे भेजे जा रहे हैं।
बिहार के मुजफ्फरपुर अनुसंधान केंद्र की ओर से लीची की तीन प्रजातियां गंडकी योगिता, गंडकी लालिमा और गंडकी संपदा विकसित की गई है। इसके साथ यहां की शाही व चाइना वेरायटी भी देश के अन्य प्रदेश में भेजी जाती है। अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना इसमें सहयोग कर रहा है।