मक्का की सफेद और पीली किस्म तो किसानों की आमदनी का बेहतर और कम समय में तैयार होने वाली फसल है। मक्का , पशुओं का मिठास वाला चारा भी है। मक्का का आटा और एथेनॉल के लिए इस्तेमाल तो जगजाहिर है। अब मक्का की नई किस्म बाजार में है – काले दाने वाली मक्का। यह पौष्टिक भी है और किसानों को मुनाफा देने वाली है। काली मक्का की बिजाई करके किसानों को कम ज़मीन से अच्छा मुनाफा मिलता है।काली मक्का की खेती पर देश में पहली बार छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र ने रिसर्च किया और मक्का की नई प्रजाति जवाहर मक्का 1014 विकसित की। कृषि वैज्ञानिक अब इस किस्म को लगाने की सलाह देते हैं। मक्का की यह किस्म अपने पोषक तत्वों के कारण कुपोषण से लड़ने में कारगर साबित होगी। कई स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों में इस उपयोग संभव हो सकेगा।
देश में मध्य प्रदेश सहित सभी राज्यों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने मक्का की यह प्रजाति अनुशंसित की है। किसान एक एकड़ जमीन में 8 किलो बीज से 26 क्विंटल तक पैदावार ले सकता है। मक्का की यह किस्म 90 से 95 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी सिल्क 50 दिन में आती है। काले मक्का की फसल के अच्छे विकास के लिए अधिक गर्म मौसम की जरूरत होती है। जब इसके पौधे पर भुट्टे तैयार होने लगते हैं तब अधिक पानी की जरुरत होती है। इसकी खेती कतार में की जाती है और कतार में पौधे से पौधे की दूरी 60 से 75 सेमी होनी चाहिए। मक्का की यह प्रजाति तना छेदक रोग के प्रति सहनशील है। वर्षा आधारित पठारी क्षेत्र के लिए यह किस्म अधिक उपयुक्त है। आमतौर पर पीले और लाल मक्का के पौधों के पत्ते हरे रंग के होते हैं। काली मक्का के पौधों में पत्ते बैंगनी रंग के होते हैं। काली मक्का का भुट्टा 20 से 25 सेमी तक लंबा होता है और इनके पौधों की लंबाई 2.5 मीटर से 3 मीटर तक होती है। काली मक्का के दानों में स्टार्च अधिक होता है। इस किस्म की मक्का के पौधे पर भुट्टे में जब दाने तैयार होने लगते है तब काले पड़ना शुरू हो जाते हैं। यह भुट्टे एक तरह का पदार्थ छोड़ते है और इन पर दाग लगना शुरू हो जाता है। इन दागों को हाथों से हटाया जा सकता है। काली मक्का के दानों को पकने में अधिक समय लगता है। पकने के बाद इसके दाने काले, चमकीले और आकर्षक दिखाई देते हैं। काली मक्का के दाने पीली व सफेद मक्का की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और मीठे होते हैं। भारत में की मंडियों में इन दिनों सफेद व लाल मक्का का औसत भाव 2050 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि अधिकतम भाव 2700 रुपए प्रति क्विंटल है। अगर कोई किसान रबी फसल की कटाई के बाद जायद सीजन में काली मक्का की फसल लगाता है तो उसे 90 से 95 दिन में पैदावार मिल जाती है। मक्के की यह किस्म कुपोषण से लड़ने में कारगर है। इसमें आयरन, कॉपर और जिंक अधिक मात्रा में मिलता है। यह मक्का की पहली किस्म है जो न्यूट्रीरिच और बायो फोर्टिफाइड है। इस किस्म का भुट्टा बाजार में महंगे दाम पर मिलता है। ऑनलाइन 200 रुपए का एक भुट्टे बिक रहे हैं। सामान्य मक्का की तुलना में इसका भाव हमेशा ज्यादा मिलता है, क्योंकि बहुत कम किसान इसकी किस्म की खेती करते हैं।