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हिमाचल प्रदेश के लहसुन की मांग दक्षिण भारत की सब्जी मंडियों तक

लगातार बरसात और बर्फबारी के बावजूद हिमाचल प्रदेश के सिरमौर इलाके में बोये जाने वाले लहसुन को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। इस पहाड़ी इलाके के चार हजार हेक्टेयर में किसान लहसुन की खेती करते हैं। आमतौर पर जून महीने में लहसुन की खेतों से खुदाई शुरू हो जाती है, लेकिन थोक कारोबारी कुछ सप्ताह पहले ही पहुंच जाते हैं। सिरमौर के लहसुन की सबसे ज्यादा डिमांड चेन्नई व तमिलनाडु में है। इस बार लहसुन की बेहतर पैदावार के लिए एग्री फाउंड पार्वती नाम की किस्म वरदान साबित हुई है, जबकि जम्मू से लाया जाने वाला गैर परिष्कृत बीज कोई खास दमदार साबित नहीं हुआ है। एग्री फाउंड पार्वती नेशनल हॉर्टिकल्चर रिसर्च एंड डिवेलपमेंट फाउंडेशन के माध्यम से इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च द्वारा उच्च गुणवत्ता के साथ तैयार किया जाता है। अब यह जानना बहुत जरूरी है कि आईसीआर केवल सीड ही तैयार करती है।
सिरमौर के लहसुन की सबसे ज्यादा डिमांड चेन्नई व तमिलनाडु में है। इस बार लहसुन की बेहतर पैदावार के लिए एग्री फाउंड पार्वती नाम की किस्म वरदान साबित हुई है, जबकि जम्मू से लाया जाने वाला गैर परिष्कृत बीज कोई खास दमदार साबित नहीं हुआ है।अब यह जानना बहुत जरूरी है कि आईसीआर केवल सीड ही तैयार करती है।
जिला सिरमौर में लहसुन की सप्लाई करने वाले आढ़तियों सहित थोक कारोबारियों की मानें तो इस समय नासिक का नया लहसुन हरियाणा व पंजाब में अधिक मात्रा में आ रहा है। दिल्ली की मंडियों से यह सहारनपुर, अंबाला आदि मंडियों तक पहुंचता है। यहीं से यह लहसुन 225 से 250 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिल रहा है। जैसे-जैसे लहसुन की मोटाई बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे दाम भी बढ़ते जाएंगे। वहीं एपीएमसी के अनुसार दाम बढ़ने का एक कारण यह भी है कि यहां फसल का ऑफ सीजन चल रहा है और बाहरी राज्यों की मंडियों से भी कम मात्रा में ही इसकी सप्लाई हो रही है। वहीं स्थानीय आढ़तियों की मानें तो बहुत कम ही लहसुन मंगवा रहे हैं, क्योंकि बाहरी राज्यों के इस लहसुन के दाम काफी अधिक होने के कारण लोग इसे कम ही खरीद रहे हैं।
काला लहसुन भी होता है। औषधीय गुणों से भरपूर इस लहसुन की विदेशी बाजारों में भी बहुत मांग है। काले लहसुन का उपयोग सदियों से जापान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड जैसे कुछ एशियाई देशों में कई व्यंजनों में किया जाता रहा है। हालांकि, इसके चमत्कारी स्वास्थ्य लाभों ने धीरे-धीरे इसे पूरी दुनिया तक पहुंचा दिया है। इसके लिए नियमित लहसुन को कम से कम दो सप्ताह के लिए अलग-अलग तापमान में किण्वित किया जाता है। लहसुन को तब तक पकाया जाता है जब तक कि इसकी कली काली न हो जाए और छिलका भूरे रंग का न हो जाए।

 

 

 

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