भारत में झारखंड भी आदिवासी बहुल सूबा है। आर्थिक पिछड़ापन है। पक्का आवास तो सपना है। शिक्षा और विकास की धूप अभी इनके गांव तक पहुंचने को तरस रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की हेमन्त सोरेन सरकार इसके लिए ठोस कदम उठाने की तैयारी में है।
मुख्यमंत्री सोरेन के निर्देश पर आदिवासी समूह के लिए ट्राइबल डेवलपमेंट डिजिटल एटलस तैयार किया जा रहा है। इस कार्य के प्रथम चरण में अति कमजोर आदिवासी समुदाय (पीवीटीजी) का बेसलाइन सर्वे किया जाएगा। आदिवासी गाँवों की बुनियादी सुविधाओं की वर्तमान स्थिति, विकास के मानक लक्ष्य से क्रिटिकल गैप सर्वे, प्रत्येक गांव व टोला में शिक्षा, कौशल क्षमता, रोजगार, आय, जीवनस्तर आदि के सम्बन्ध में ब्यौरा तैयार होगा। राज्य सरकार उनके सामाजिक बुनियादी ढांचा, आजीविका और स्वास्थ्य पर ध्यान केन्द्रित कर कार्य योजना को अमली जामा पहनाएगी। ताकि ऐसे जनजातीय समूह के लोगों को पक्के आवास, स्वच्छता, शुद्ध पेयजल, बिजली/सौर विद्युतीकरण, पेंशन, आयुष्मान कार्ड, पीडीएस और ई-श्रम का लाभ, इलाज, इंटरनेट कनेक्टिविटी, वनोत्पाद आधारित आजीविका, स्वयं सहायता समूहों की सहायता दी जा सके।
एटलस कल्याण विभाग द्वारा तैयार किया जाएगा, जिसके तहत प्रथम चरण में सभी पीवीटीजी बस्तियों का मूल्यांकन और मैप कर डेटाबेस तैयार होगा। जिसके आधार पर प्रमुख सामाजिक आर्थिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और आजीविका केंद्रित पहलों के कार्यान्वयन के लिए एक व्यापक कार्य योजना को मिशन मोड में लागू किया जाएगा। ताकि अगस्त 2023 तक राज्य में चिन्हित कुल 67,501 पीवीटीजी परिवार और 3, 705 गांवों में की करीब 2,92,359 जनसंख्या के विकास के लिए लकीर खींची जा सके।
मुख्यमंत्री की पहल पर असुर, कोरबा, माल पहाडिय़ा, बिरहोर, सबर, बिरजिया, सौर पहाडिय़ा जैसे आठ अति संवेदनशील जनजातीय समुदाय के युवक-युवतियों के नियोजन के लिए नि:शुल्क आवासीय कोचिंग का शुभारम्भ कुछ माह पूर्व किया गया है। प्रथम चरण में 150 युवाओं को विभिन्न परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाएगा। इसमें 60 से अधिक युवतियां हैं। अति संवेदनशील जनजातीय समुदाय के लिए यह देश का पहला आवासीय कोचिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ है।
अति कमजोर जनजातीय समूह को एक ओर जहां सामाजिक-बुनियादी ढांचे में समाहित किया जाएगा। वहीं इनके पारंपरिक आजीविका की गतिविधियों को मजबूत करने का कार्य होगा। जेटीडीएस चने की खेती और एसएचजी और क्लस्टर आधारित एफपीसी और महिला समूहों के माध्यम से जेएसएलपीएस इसके लिए कार्य करेगा।
सिदो कान्हू वनोपज फेडरेशन के माध्यम से इनके उत्पादों का बाजारों तक पहुंच बनाकर आय में वृद्धि की जाएगी। समूह में पाए जाने वाले एनीमिया, विशेष रूप से सिकल सेल एनीमिया और कुपोषण की व्यापकता में कमी सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा (डाकिया योजना) लाभ और स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने को प्रमुखता दिया जायेगा।