विरेन्द्र सिंह लाठर
अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिको ने छद्म कृषि विज्ञान के नैनो यूरिया को राष्ट्रीय खाध्य सुरक्षा के लिए खतरा और किसानो का खुला शोषण बताया. पंजाब कृषि विश्वविधालय, लुधियाना द्वारा ताजा प्रकाशित अनुसंधान के अनुसार ईफको की नैनो यूरिया तकनीक अपनाने से गेंहू की पैदावार मे 21.6 प्रतिशत और धान की पैदावार में 13 प्रतिशत कमी दर्ज हुई। इसके अतिरिक्त गेहूं और धान के दानों में नाइट्रोजन 17, प्रोटीन में 11 प्रतिशत की कमी भी दर्ज हुई है।
ज्ञात रहे कि सरकारी संस्था ईफको ने वर्ष-2021 मे तरल नैनो यूरिया का विपणन इस दावे के साथ शुरू किया था कि तरल नैनो यूरिया (4 प्रतिशत नाइट्रोजन) की 500 मिलीलीटर की बोतल 50 किलो परंपरागत यूरिया (46 प्रतिशत नाइट्रोजन) के एक बेग के बराबर है।
केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा खूब प्रचार के बावजुद नैनो यूरिया अभी तक किसानों और कृषि वैज्ञानिकों का विश्वास नहीं जीत पाया है, क्योंकि छद्म नैनो यूरिया ना तो किसानो की फसल के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ और ना ही वैज्ञानिक कसौटी पर खरा साबित हुआ है।
सभी वैज्ञानिक पद्धति परिकल्पना, प्रयोग, परीक्षण और निष्कर्ष का एक निरंतर चक्र है। विज्ञान प्रयोगसिद्ध अनुसन्धान से अंतर्दृष्टि देता है। इसलिए ये देव श्रुति, धर्मशास्त्र, अध्यात्म और छद्म विज्ञान व व्यापार से बिलकुल अलग है। छद्म विज्ञान ऐसे दावे, आस्था या प्रथा को कहते हैं जिसे विज्ञान की तरह प्रस्तुत किया जाता है, पर जो वैज्ञानिक विधि का पालन नहीं करता है और छद्म व्यापार ऐसे व्यापार है ज़िनका उदेश्य झूठे तथ्यो के सहारे वस्तुओ को बेचकर भोलीभाली जनता को लूटना होता है।
घनी आबादी (140 करोड़) वाले भारत की खाद्य सुरक्षा पिछले 50 वर्षो से मुख्यता गेहूं और धान के उत्पादन पर आधारित रही है। जिनमें मात्र 5-10 प्रतिशत की कमी से ही, देश मे खाद्य सुरक्षा के खतरे की घंटी बज जाती है और सरकार गेहूं आयात करने और चावल निर्यात रोकने पर मजबूर हो जाती है। ऐसी विकट परिस्थिति मे बिना उचित वैज्ञानिक परीक्षण किए नैनो उर्वरको पर जल्दबाजी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकती है और इन अविश्वसनीय उर्वरको को दूसरे उर्वरकों के साथ, कम्पनियों द्वारा जबरदस्ती बेचना किसानों का खुला शोषण है!
अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक छद्म नैनो यूरिया का विरोध शुरू से कर रहे हैं। प्रतिष्ठित अंतराष्ट्रीय अनुसंधान ज़र्नल ‘पलांट सायल’ के अंक 10 अगस्त 2023 मे अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों मेक्स फरेंक और सौरेंन हस्टीड ने रहस्योद्घाटन किया है कि नैनो यूरिया के दावो झूठे और इस बारे मे भारत की उर्वरक कम्पनी ईफको किसानो और समाज को झूठ बोलकर नैनो यूरिया का प्रचार और विपणन कर रही है! नैनो यूरिया के इस दुष्प्रचार से देश की खाध्य सुरक्षा और समाज खास तौर पर किसानो मे कृषि विज्ञान अनुसंधान मे विश्वास कम होने की संभावना है !
इसी तरह की आशंका देश के प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिकों ने पहले भी अभिव्यक्त की है। उनके अनुसार तकनीकी तौर पर नैनो यूरिया पहले से प्रचलित पारंपरिक दानेदार यूरिया का विकल्प कभी नहीं बन सकता और ना ही कृषि विश्वविद्यालयें व संस्थानों ने इसे अपनी फसलों की समग्र सिफारिश मे अनुशंसित व शामिल किया है!
आर्थिक तौर पर भी नैनो यूरिया किसान हितेषी नही है, क्योंकि आधे लीटर नैनो यूरिया का दाम 240 रुपये है, जो कि पारंपरिक दानेदार यूरिया के एक बेग (45 किलो) के दाम के लगभग बराबर ही है! इन सब तथ्यो के बाऊजुद, ईफको और सरकार द्वारा नैनो यूरिया का दुष्प्रचार दूर्भागयपूर्ण और सहकारी संस्था ईफको द्वारा इसका वार्षिक लगभग 5 करोड बोतल उत्पादन (₹1200 रूपये कीमत वार्षिक) और किसानों को दुसरे उर्वरको के साथ जबर्दस्ती बेचना, किसानो से खुली लूट है। जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिए घातक साबित हो सकता है।
कृषि रसायन विज्ञान के अनुसार, रासायनिक रूप मे एक बेग (45 किलो) पारंपरिक यूरिया में 46% नाइट्रोजन होती है, जिसका मतलब है कि 45 किलोग्राम यूरिया में लगभग 20 किलोग्राम नाइट्रोजन होती है। इसके विपरीत, 500 मिलीलीटर नैनो यूरिया में 4% नाइट्रोजन की दर से मात्र 20 ग्राम नाइट्रोजन होती है यानि दानेदार परम्परिक यूरिया के मुकाबले हजार गुना से भी कम नाईट्रोजन नैनो यूरिया में होती है।
तब सामान्य सी बात है कि नैनो यूरिया की 20 ग्राम नाइट्रोजन दानेदार यूरिया की 20 किलोग्राम नाइट्रोजन की भरपाई कैसे कर सकती है। जहा तक ईफ़को द्वारा नैनो यूरिया के फसलों के पत्तों पर छिड़काव के कारण ज्यादा प्रभावशाली होने के खोखले दावो की बात है तो दानेदार यूरिया भी पूरी तरह से पानी मे घूलनशीन होने से 2-5% छिडकाव की सिफारिश कृषि विश्वविधालयो ने सभी फसलो मे पहले ही की हुई है, यानि जो तथाकथित लाभ 240 रूपये दाम वाला आधा लीटर नैनो यूरिया छिडकाव से मिल सकता है, उसे किसान मात्र 12 रूपये दाम के 2 किलो पारम्परिक यूरिया (2% यूरिया) प्रति एकड़ छिड़काव द्वारा पहले से ही ले रहे है।
कृषि विज्ञान के अनुसार, पौधों को प्रोटीन बनाने के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, दलहन जैसी फसलो मे लगभग पूरा स्रोत मिट्टी के बैक्टीरिया से प्राप्त करते हैं जो पौधे की जड़ों में रहते हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को तोड़ने की क्षमता रखते हैं, या फिर अनाज व दुसरी फसलो मे यूरिया जैसे रसायनों से पौधों नाइट्रोजन प्रयोग करके ज्यादा पैदावार उत्पादन करते है। भूमि मे नाइट्रोजन की कमी से अनाज, तिलहन, आलू आदि फसलो की उन्नत किस्मो के उत्पादन मे 50-60% तक की कमी देखी गई है! भारत जैसे 140 करोड घनी आबादी वाले देश मे, जहा वर्ष -2022 मे जल्दी गर्मी आने से मात्र 5% गेंहू उत्पादन मे कमी होने व खरीफ -2023 मे मानसून कमजोर होने से ही, जब सरकार को खाध्य सुरक्षा खतरे की आहट सुनाई देने लगे, तब तकनीकी तकनीकी रुप से अविश्वसनीय नैनो यूरिया का सरकार द्वारा उत्पादन और विपणन देश की खाध्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित होगा।
अंतराष्ट्रीय खाद्य और कृषि संघठन के अनुसार एक टन गेहूं ,चावल, मक्का आदि अनाज के उत्पादन के लिए फसलो को लगभग 25 किलोग्राम नाइट्रोजन की जरूरत होती है और 25 किवंटल अनाज प्रति एकड उत्पादन के लिए 62 किलो नाइट्रोजन चाहिए जो 130 किलो यूरिया प्रति एकड डालने से मिलेंगी! वैसे भी फसलो की उन्नत किस्मे मे भी यूरिया की प्रभावशीलता मात्र 60% तक ही होती है। 3 सितम्बर – 2022 के “दी हिन्दू अखबार” मे छपे लेख मे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार से मृदा विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एनके तोमर ने कहा कि भले ही कल्पनिक रुप में आधा लीटर सरकारी नैनो यूरिया 100 प्रतिशत प्रभावी रूप से पौधो को उपलब्ध हो, लेकिन यह केवल 368 ग्राम अनाज पैदा करेगा। इसलिए, नैनो यूरिया पर किये जा रहे सरकारी प्रयास सार्वजनिक धन की बर्बादी होती है। ईफको के नैनो यूरिया पर दावे निराधार है और किसान व कृषि के लिए विनाशकारी होंगे! इस बारे प्रोफेसर तोमर द्वारा नीति आयोग को लिखे पत्र का सरकार ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया। इसलिए इस किसान और राष्ट्रीय विरोधी वैज्ञानिक व प्रशासनिक घोटाले की जांच माननीय सर्वोच न्यायालय को राष्ट्र हित में जल्दी से जल्दी करवानी चाहिए।
Content taken by – ( डाउन टू अर्थ से साभार)