गंगा के पानी में फीकल कोलीफॉर्म तय मानकों से 37 गुणा तक अधिक है। बरसात के दौरान गंगा को लेकर कई तरह के विचार और मान्यताएं हैं। हाल ही में कांवड़ यात्रा में सात करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा जल का आचमन, पुण्य स्नान और कांवड़ कंधे पर रख कर अपने संकल्प को पूरा किया।
चार करोड़ श्रद्धालुओं ने हरिद्वार में उपस्थित दर्ज कराकर विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने को लेकर उत्तराखंड, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारें गद-गद है। इस साल पहाड़ दरकने, बादल। फटने, मूसलाधार बारिश और नदी नाले उफनने जैसे संकट कांवड़ियों की परीक्षा लेने को तैयार थे। सब अपनी अपनी जगह मुस्तैद थे। कांवड़ियों के चरण धोकर धन्य होने वाले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री प्रशासन तक मुस्तैद था।
आपदाग्रस्त इलाकों वाले उत्तराखंड ने कांवड़ियों के स्वागत-सत्कार का विश्व रिकॉर्ड का जश्न मनाया। अच्छा कहा गया। इस साल भी कांवड़ मेला ख़त्म हो गया लेकिन कई सवाल पीछे छोड़ गया। कांवड़ यात्री 35 हजार मीट्रिक टन कूड़ा छोड़कर चले गए हैं। जिसकी सफाई करना नगर निगम प्रशासन के लिए कड़ी चुनौती बना है। हालांकि, नगर निगम प्रशासन की ओर से सफाई अभियान शुरू कर दिया गया है। उसका कहना है कि सफाई व्यवस्था को जल्द पटरी पर ला दिया जाएगा। उत्तराखंड प्रशासन इस मेले को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान से जोड़कर पालिथीन के रोकथाम करने के अवसर बना सकता था। कांवड़ियों पर फूल बरसाने के साथ उन्हें नदियों के साथ धर्म नगरी को साफ रखने की सीख भी धर्म की चाशनी में डुबाकर दी जा सकती थी।
जुलाई महीने में चार तारीख से पहले ही शुरू कांवड़ मेला में हल्की पैड़ी से ही पांच करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया और आस्था का जल कंधे पर रखा। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों की कड़ी मेहनत से कांवड़ मेला भी सकुशल संपन्न हो गया है। लेकिन कांवड़ मेले में कांवड़ यात्रियों की ओर से शहर को गंदा कर दिया गया है। जिससे गंगा घाटों के साथ ही तमाम क्षेत्रों में जगह-जगह कूड़े और प्लास्टिक की पन्नी के ढेर लगे हैं। इन्हें हटाने में अभी समय लगना स्वाभाविक है।
कांवड़ मेला हरिद्वार के दुकानदारों के लिए अब आस्था से ज्यादा कारोबार का अवसर है। हरिद्वार के रोड़ी बेलवाला, पंतद्वीप, ऋषिकुल मैदान, हर की पैड़ी क्षेत्र और गंगा किनारे फैली गंदगी की दुर्गंध से बुरा हाल है। इससे संक्रामक बीमारियों के फैलने का भी खतरा पैदा हो गया है। हालांकि नगर निगम मेला क्षेत्र में दवाओं को छिड़काव में जुटा है लेकिन संक्रामक रोगों का ख़तरा बरसात बढ़ा रही है।
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