भारत में पूर्वोत्तर के राज्यों में मणिपुर में हिंसक घटनाओं की वजह से माहौल अशांत है। कामकाजी लोग ही नहीं किसान तक अपने खेतों तक नहीं जा सकते हैं। कृषि विभाग के निदेशक एन गोजेंद्रो ने भी कहा कि राज्य में चल रही अशांति के कारण कई किसान अपने खेतों की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं। 28 जून तक, लगभग 5,127 हेक्टेयर कृषि भूमि पर खेती नहीं हो पाई है। मिली जानकारी के अनुसार सूबे में अशांति के परिणामस्वरूप 15,437.23 मीट्रिक टन खाद्य उत्पादन का नुकसान हुआ है।
इस साल 3 मई को जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से ही राज्य सरकार राज्य में सामान्य स्थिति लाने की कोशिश कर रही है, यहां तक कि परिधीय क्षेत्रों में खेती करने वाले किसानों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा बल भी मुहैया करा रही है। इसके लिए सरकार ने वीवीआईपी, वीआईपी, मंत्रियों और विधायकों के एस्कॉर्ट और सुरक्षा कवर में कटौती करने और राज्य में किसानों की सुरक्षा के लिए करीब 2,000 राज्य बल मुहैया कराने की घोषणा की थी।
सुरक्षा कवर की घोषणा के बाद, राहत शिविरों में दो महीने रहने के बाद, कई किसान खेती के लिए वापस लौट आए। लेकिन मणिपुर में बुवाई के मौसम में हिंसा के कारण, धान के खेतों की सिंचाई के लिए वर्षा जल की कमी के कारण किसानों को कृषि कार्य करने में संघर्ष करना पड़ रहा है।
इसके अलावा, सरकार द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद, धान के खेतों वाले ऐसे क्षेत्र हैं जहां किसानों को प्रवेश करना मुश्किल लगता है, क्योंकि यह उन पहाड़ियों के बहुत करीब है जहां से आतंकवादी हमले करते हैं।
इम्फाल पूर्वी जिले के पुखाओ तेरापुर के एक काश्तकार बसंता ने इम्फाल फ्री प्रेस को बताया कि हमलों के डर से इम्फाल पूर्वी जिले में कई हेक्टेयर धान के खेत खाली पड़े हैं। उन्होंने बताया कि पहाड़ी के पास वाले ही नहीं, बल्कि लगभग सभी धान के खेतों में पानी की कमी है।
अगर वे समय रहते खेती शुरू कर देते तो उन्हें पानी की कमी का सामना नहीं करना पड़ता। हालांकि, चल रहे संकट के कारण वे अपने गांव से भाग गए और लगभग दो महीने तक राहत शिविर में रहे और इस महीने वापस लौटे। इसके अलावा, घर लौटने के तुरंत बाद, वे पास की पहाड़ियों से आतंकवादियों के हमलों के डर से धान के खेतों में कदम नहीं रख पाए।
उन्होंने कहा, “दिन में आपको लगेगा कि गांव में शांति है। लेकिन रात को आकर आपको सच्चाई पता चलेगी।” उन्होंने आगे कहा कि पहाड़ी इलाकों में गोलीबारी और आगजनी की आवाजें अभी भी बंद नहीं हुई हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि गांव के पुरुष रात में गांव की सुरक्षा में लगे रहते हैं और दिन में कुछ लोग खेती करने चले जाते हैं, कुछ गाड़ी चलाने चले जाते हैं और कुछ लोग बिना काम के रहते हैं।
प्रभावित इलाकों में किसानों का कहना है, “पुखाओ तेरापुर में 70 प्रतिशत खेती शुरू हो गई है, लेकिन 50 प्रतिशत किसान पानी की कमी के कारण बीज नहीं बो पा रहे हैं।” उन्होंने कहा कि अभी खपत के लिए पर्याप्त धान है, लेकिन उन्हें डर है कि दो-तीन महीने में यह खत्म हो जाएगा।