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उत्तर प्रदेश – खेतों में खाद का काम करती हैं मूंग व अन्य दलहनी फसलें

दलहन की सभी फसलों की जड़ों में गांठे पाई जाती हैं। इनमें राइजोबियम जीवाणु उपस्थित रहते हैं जो वायुमण्डल से नाइट्रोजन लेकर भूमि को उपलब्ध कराते हैं। भूमि में जीवांश पदार्थ तथा नत्रजन की मात्रा में वृद्धि होती है। इससे दलहनी फसलों के अलावा अगली फसल को भी लाभ होता है।

दलहनी फसलें बहुपयोगी होती हैं। यह दालों के अलावा हरे चारे तथा हरी खाद के लिए भी उगाई जाती हैं। अरहर तो बाड़, छाजन, जलावन, खांची, दवरी, ढाका, एवं खरहर के रूप में झाड़ू के भी काम आता है।

किसान मूंग की खेती करें, इसके लिए केंद्र सरकार ने चंद रोज पहले जिस न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की उनमें भी इन फसलों पर ध्यान दिया गया है। मसलन पिछले साल के मुकाबले मूंग के समर्थन मूल्य में प्रति क्विंटल सर्वाधिक वृद्धि की गई है। 2022-2023 में इसका समर्थन मूल्य 7755 रुपये प्रति क्विंटल था जो 2023-24 में बढाकर 8558 रुपये कर दिया गया। इसी तरह अरहर का मूल्य 6600 से 7000 रुपये और उड़द का 6600 से 6950 रुपये कर दिया गया।

मूंग एवं उड़द की खेती तो तीनों फसली सीजन रबी, खरीफ एवं जायद में संभव है। यह कम समय में होने वाली और सहफसली खेती के लिए भी सही है। कम खाद एवं पानी की जरूरत की वजह से इनकी खेती में श्रम एवं संसाधन की बचत होने से किसान को प्रोटीन से भरपूर एक फसल मिलने के साथ अतरिक्त फसल के रूप में अतिरिक्त लाभ भी मिलता है।

दलहनी फसलों की जड़ों में ग्लोमेलिन प्रोटीन पाया जाता है जो मिट्टी के कणों को जोड़े रखता है। इससे मिट्टी का क्षरण नहीं होता, जल संचयन क्षमता बढ़ती है और मिट्टी का पीएच मान संतुलित रहता है।

किसी न किसी रूप में रुचि के अनुसार दाल लगभग हर घर में हर रोज बनती है। इसलिए बाजार में हरदम इनकी मांग बनी रहती है। उत्तर प्रदेश आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा सूबा है। सेहत के प्रति बढ़ती जागरुकता एवं बेहतर होती अर्थव्यवस्था के नाते लोगों की बढ़ी आय, आने वाले समय में इसकी मांग बढ़ाने की वजह बनेगी।

कृषि में विविधीकरण की बात की जाती है। सरकार भी लगातार कृषि विविधीकरण पर जोर दे रही है। दलहनी फसलों की इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

लगातार एक ही तरह की फसलों की बुआई करते रहने से मिट्टी की ताकत में कमी आती है। फसलों में लगने वाले रोग और कीटों का प्रभाव अधिक रहता है। पर, दलहनी फसलों की बुआई करने से खेतों की बुआई में परिवर्तन आता है और फसल चक्र लागू होता है। लगातार फसल बदलने के कारण खर-पतवार का प्रकोप भी अपेक्षाकृत कम होता है।

उत्तर प्रदेश में योगी-सरकार ने दलहन का उत्पादन बढ़ाकर प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है। इस योजना पर काम तो योगी सरकार के पहले कार्यकाल में ही शुरू हो गया था। नतीजतन 2016-17 से 2020-21 के दौरान दलहन का उत्पादन 23.94 मीट्रिक टन से बढ़कर 25.34 लाख मीट्रिक टन हो गया। इस दौरान प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 9.5 कुंतल से बढ़कर 10.65 कुंतल हो गई।

योगी-सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में इसके लिए पांच साल का जो लक्ष्य रखा है उसके अनुसार दलहन का रकबा बढ़ाकर 28.84 लाख हेक्टेयर करने का है। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 12.41 कुंतल और उत्पादन 35.79 मीट्रिक टन करने का है।

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