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गलत सरकारी नीतियों के कोल्हू में पिस रहा है देश का सरसों उत्पादक किसान

इस साल भारत में खराब मौसम के बावजूद सरसों की अच्छी फसल हुई। किसान बाजार और सरकारी खरीद से अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद के साथ खुश थे। लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लगातार न होने और खरीद केन्द्र अचानक बंद कर देने से किसान हताश है।

केंद्र सरकार ने एक न‍ियम बनाया हुआ है क‍ि कुल उत्पादन का एक चौथाई त‍िलहन एमएसपी पर खरीदा जाएगा। इस ह‍िसाब से इस साल 31.25 लाख मीट्र‍िक टन सरसों की खरीद होनी चाह‍िए। क्योंक‍ि उत्पादन 125 लाख मीट्र‍िक टन हुआ है। लेक‍िन देश में अब तक स‍िर्फ 6,72,802 मीट्र‍िक टन ही सरसों खरीदा गया है।

खाद्य तेलों की भारतीय आयात नीत‍ि ऐसी हो गई है क‍ि कारोबार‍ियों को दूसरे देशों से खाद्य तेल मंगाना सस्ता पड़ रहा है। ऐसे में वो वही कर रहे हैं ज‍िससे उनकी कमाई बढ़े। अब भारतीय किसान अपनी सरसों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम पर खुले बाज़ार में बेचने को मजबूर हैं।

रबी की मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तय क‍िया है। अध‍िकांश मंड‍ियों में इसका न्यूनतम, औसत और अध‍िकतम दाम एमएसपी के आसपास भी नहीं है। राजस्थान की कुछ मंड‍ियों में इसका दाम 4000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक के न‍िचले स्तर पर आ गया है। ज्यादातर मंड‍ियों में 4500 रुपये का भाव चल रहा है।

सरसों की धीमी खरीद और सरकारी बेरुखी के परिणाम का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि सबसे अधिक सरसों की पैदावार करने वाला राजस्थान अब तक स‍िर्फ 1,15,668 मीट्र‍िक टन सरसों खरीदी गई है। जबक‍ि यहां एक अप्रैल से खरीद चल रही है और कुल 15 लाख मीट्र‍िक टन से अध‍िक खरीद की जानी है। देश के कुल सरसों उत्पादन में इसकी ह‍िस्सेदारी 48.2 फीसदी है।

मध्य प्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है। कुल उत्पादन में इसकी ह‍िस्सेदारी 13.3 फीसदी की है. जबक‍ि यहां अब तक स‍िर्फ 1,55,701 मीट्र‍िक टन सरसों खरीदी गई है।

हर‍ियाणा देश का तीसरा सबसे बड़ा सरसों उत्पादक प्रदेश है। कुल उत्पादन में इसकी ह‍िस्सेदारी 13.1 फीसदी की है। यहां देश में सबसे ज्यादा 3,47,105 मीट्र‍िक टन सरसों खरीदा गया है।

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