जलवायु परिवर्तन की मार के अलावा देसी और विदेशी बाजारों में दार्जीलिंग चाय की खपत भी घटी है । जानकारों का कहना है कि हालात तब से और भी खराब हुए हैं जब से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ है । सन 2022 में इन दोनों देशों के बीच लड़ाई छिडऩे के बाद विदेशी बाजारों में दार्जीलिंग चाय की खपत घटी है ।
चाय की खेती भी जलवायु परिवर्तन की मार से अछूती नहीं है । जिंदगी के हर पड़ाव पर जलवायु परिवर्तन का असर दिख रहा है । चाय की खेती भी इससे प्रभावित है । खास तौर पर दार्जीलिंग चाय, जिसकी क्वालिटी पूरी दुनिया में सबसे अच्छी मानी जाती है । विदेशी बाजारों में इस चाय की मांग सबसे अधिक है । लेकिन जलवायु परिवर्तन ने इसका उत्पादन को कम कर दिया है ।
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1993 और 2002 की तुलना में आज चाय का उत्पादन बड़े पैमाने पर घट गया है । जलवायु परिवर्तन से सालाना बारिश, तापमान और सूरज की रोशनी का पैटर्न प्रभावित हुआ है जिसका दुष्प्रभाव चाय की खेती पर देखा जा रहा है ।
यूरोप में अभी मंदी का दौर चल रहा है । ज़ानकार कहते हैं कि 2022 नवंबर तक 2.84 मिलियन किलो चाय का निर्यात हो सका जबकि 2021 में यह मात्रा 3.5 मिलियन किलो था । यूरोप के अलावा जापान भी दार्जीलिंग चाय का बहुत बड़ा खरीदार है । लेकिन डॉलर के मुकाबले जापानी करंसी येन की गिरती कीमतों के चलते जापानी खरीदारों को दार्जीलिंग से घाटा हो रहा है । इस वजह से जापान में इस चाय की खपत घटी है ।
टी बोर्ड ऑफ इंडिया ने एक आंकड़ा जारी किया है जिसके मुताबिक साल 2021 में दार्जीलिंग चाय का उत्पादन महज 70 लाख किलोग्राम रहा था । एक तरह चाय की पैदावार घटी है, तो दूसरी ओर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से विदेशों में चाय की खरीदारी में कमी आई है । रूस पर अभी कई देशों ने प्रतिबंध लगाया हुआ है जिससे वहां के निर्यात में कमी देखी जा रही है । इस युद्ध की वजह से कई यूरोपीय देशों ने दार्जीलिंग चाय की खरीद या तो बंद कर दी है या पहले से कम कर दी है ।