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उत्तराखंड : आबोहवा नहीं अनुकूल, हर्षिल घाटी में नहीं खिल पाए केशर के फूल

उद्यान विभाग की कश्मीर की तर्ज पर हर्षिल घाटी में केशर की खेती की योजना परवान नहीं चढ़ पाई है। एक ओर काश्तकारों का कहना है कि इसके उत्पादन के लिए अगर उन्हें उच्चस्तरीय प्रशिक्षण दिया जाता है, तो सेब और राजमा के साथ यह आमदनी का स्रोत बन सकता है। वहीं, विभागीय अधिकारियों का कहना है कि घाटी में केशर की खेती के अनुरूप जलवायु नहीं मिलने के कारण इसका उत्पादन नहीं हो पा रहा है।

वर्ष 2022 में उद्यान विभाग ने हर्षिल घाटी में पहली बार कश्मीर की तर्ज पर केशर की खेती की योजना शुरू की। इसमें घाटी के आठ गांव मुखबा, धराली, हर्षिल, बगोरी, झाला, पुराली, जसपुर, सुक्की से पहले चरण में चार से पांच काश्तकारों का चयन कर उन्हें कश्मीर से केशर के बीज उपलब्ध करवाए गए।

प्रगतिशील किसान संजय पंवार ने बताया कि पहले चरण में इसका अच्छा उत्पादन हुआ, लेकिन दूसरी बार में इसके उत्पादन में 50 प्रतिशत का अंतर आ गया और तीसरे चरण में यह उत्पादित ही नहीं हुआ। उनका कहना है कि जलवायु एक कारण हो सकता है, लेकिन अगर काश्तकारों को उच्चस्तरीय प्रशिक्षण दिया जाता तो केशर का उत्पादन हो सकता था। इसके साथ ही अगर यह हर्षिल घाटी में नहीं किया जा सकता है, तो इसे भटवाड़ी विकासखंड मुख्यालय के आसपास के गांवों में प्रशिक्षण देकर इसका अच्छा उत्पादन एक आर्थिकी के स्रोत के रूप में किया जा सकता है।

इधर, मुख्य उद्यान अधिकारी डीके तिवारी का कहना है कि केशर की खेती 5 से 6 हजार की फीट पर होती है, लेकिन हर्षिल घाटी की ऊंचाई करीब नौ हजार फीट है। इसलिए वहां पर जलवायु समस्या के कारण यह खेती सफल नहीं हो पाई।

तत्कालीन मुख्य उद्यान अधिकारी रजनीश सिंह ने हर्षिल घाटी में कश्मीर के केसर की खेती के लिए प्रयास किए थे। उन्होंने कश्मीर से केसर के बीज मंगवाकर काश्तकारों को उपलब्ध कराए थे। उस दौरान इस काम में कश्मीर की शेर-ए कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भी सहयोग दे रहा था, लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद योजना पर आगे काम नहीं हो सका।

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