विवेकानंद कृषि अनुसंधान संस्थान के उत्तरकाशी में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने हींग उत्पादन की तैयारी कर रहा है। हींग के बीच के लिए कृषि विज्ञान केंद्र की टीम इसी माह इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नालाजी (आइएचबीटी) पालमपुर हिमाचल प्रदेश जाएगी। सितंबर में ट्रायल के रूप में हर्षिल और बगोरी के चार काश्तकारों के साथ हींग के बीज की बुआई की जाएगी।
उत्तराखंड में हींग के उत्पादन को लेकर यह पहला प्रयोग है। कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ उत्तरकाशी के विज्ञानियों ने पाया की हर्षिल घाटी की जलवायु हींग के उत्पादन के लिए अनुकूल है। इलाके में हींग के उत्पादन के लिए तैयारी शुरू की तथा काश्तकारों के साथ संवाद किया है|
हींग गाजर प्रजाति का एक छोटा सा पौधा है, जिसकी आयु पांच वर्ष है। एक पौधा करीब आधा लीटर से एक लीटर तक गम जैसी सामग्री प्राप्त होती है। बाजार में हींग की अच्छी मांग होने के कारण हींग 30 हजार से 40 हजार प्रति किलोग्राम आसानी से बिकता है।
पांच साल में इसका पौधा परिपक्व हो जाता है।एक पौधा करीब आधा लीटर से एक लीटर तक गम जैसी सामग्री प्राप्त होती है।अभी भारत हींग के लिए पूरी तरह ईरान, तुर्की, कजाकिस्तान, रूस, सीरिया और अफगानिस्तान पर निर्भर है। कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ उद्यान विशेषज्ञ डा. पंकज नौटियाल ने कहा कि हींग का उत्पादन ठंडे इलाकों में रेतीली मिट्टी (शुष्क ठंडी मरुस्थलीय भूमि) में होता है।
हर्षिल की घाटी हींग उत्पादन के लिए अनुकूल हैं। पांच वर्ष पहले इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नॉलॉजी पालमपुर ने लाहौल स्पीति, किन्नौर क्षेत्र में हींग की खेती शुरू की गई है। किन्नौर और हर्षिल घाटी की एक जैसी जलवायु परिस्थितियां है।