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चुकंदर से चीनी : कारखाने लगाने के प्रयास, पानी व खेती में समय की बचत

अब चुकंदर से भी चीनी बनेगी। कानपुर स्थित नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट (एनएसआई) के वैज्ञानिक जल्द इसकी तकनीक सीखने मिस्र जाएंगे और वहां के वैज्ञानिक अपने राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआई) की तकनीक सीखेंगे।

भारत में लाल चुकंदर से चीनी बनाने की पहली मिल श्रीगंगानगर (राजस्थान) में स्थापित की गई थी | अब पंजाब में सफेद चुकंदर से चीनी बनाने हेतु निजि क्षेत्र में कोशिश की जा रही है| पंजाब के दोआबा व मांझा इलाकों में सफेद चुकंदर की समझौता-खेती करायी जा रही है| सफेद चुकंदर में गन्ने की तरह से चीनी बनती है|

बताया गया है कि मिस्र और एनएसआई के बीच समझौता भी हुआ है। इसके तहत संस्थान के विशेषज्ञ मिस्र में गन्ने से चीनी के उत्पादन को बढ़ाने और बगास (खोई) से अन्य उत्पाद को तैयार करने की तकनीक सिखाएंगे। वहीं मिस्र में चुकंदर से चीनी बनाने की सफल तकनीक को एनएसआई देश में लाने का प्रयास करेगा। उन्होंने बताया कि मिस्र के अलावा नाइजीरिया और श्रीलंका के साथ भी एमओयू हुआ है।

नाइजीरिया के शुगर डेवलपमेंट काउंसिल के साथ हुए एमओयू के तहत नाइजीरिया में एक दूसरा शर्करा संस्थान विकसित करना है। वहां इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीक के साथ शिक्षकों को भी प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी एनएसआई की होगी।

इससे देश के छात्रों को अच्छा मौका मिलेगा। वहां प्लेसमेंट के साथ तकनीक और इंडस्ट्री को भी फायदा होगा क्योंकि नाइजीरिया पूरी तरह से देश पर निर्भर होगा। अभी तक नाइजीरिया की शुगर इंडस्ट्री मॉरीशस पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि इन तीनों एमओयू से राजस्व में विदेशी मुद्रा का लाभ होगा।

दुनिया भर में गन्ने से चीनी और गन्ने की खोई से तेल, साबुन, मेथेनॉल, डिटर्जेंट पाउडर जैसे अन्य उत्पाद काफी प्रचलित हुए हैं। सभी देश इस भारतीय तकनीक की मुरीद हैं।

इसलिए पहले जो देश यूरोप और मॉरीशस पर चीनी और इससे जुड़ी तकनीक के लिए निर्भर थे अब वे भारत पर निर्भर होने लगे हैं। इसी का नतीजा है कि श्रीलंका, मिस्र और नाइजीरिया के अलावा थाईलैंड, इंडोनेशिया सहित कई देशों ने समझौता करने के लिए ईमेल भेजा है। जल्द ही इन देशों से भी करार किया जाएगा।

गन्ने की अपेक्षा चुकंदर से अधिक चीनी उत्पादन
एनएसआई के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि संस्थान के विशेषज्ञों का एक दल जल्द मिस्र जाएगा। वहां वे चुकंदर से चीनी बनाने की तकनीक सीखेंगे।

चुकंदर ठंडे प्रदेशों की फसल है जिसे देश के सभी जिलों में करना मुश्किल है। फिर भी प्रयास किया जा सकता है क्योंकि चुकंदर की पैदावार पांच माह में तैयार हो जाती है। इसलिए इसे नवंबर माह में लगाया जा सकता है। इससे किसान साल में दो फसल कर सकेंगे जबकि गन्ना दस माह की फसल है। वहीं चुकंदर से चीनी उत्पादन गन्ने की अपेक्षा 20 फीसदी अधिक होता है, इसलिए किसानों को अधिक लाभ मिलेगा। उन्होंने बताया कि इस समझौते के बाद देश और विदेश से आने वाले छात्रों को इसका लाभ मिलेगा। अभी तक मिस्र यूरोपीय देशों पर तकनीक को लेकर निर्भर है।

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