इस बार अलीगढ़ के आलू को मंडियों तक सीमित नहीं रहना पड़ेगा| अलीगढ़ के आलू का निर्यात किया जाएगा| इसके लिए डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड व एग्रीकल्चर एंड फूड प्रोसीड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी से लाइसेंस लेना होता है| कृषि उत्पादक संगठन ने दोनों से लाइसेंस की प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है|
जनपद में धान और गेहूं के अलावा आलू भी मुख्य फसल है। इस बार किसानों में 30,150 हेक्टेयर में आलू किया है। पिछले साल 27,500 हेक्टेयर रकबा था। 2,650 हेक्टेयर आलू का रकबा बढ़ा है। कीमतें बढऩे के इंतजार में किसान आलू को शीतगृहों में संरक्षित रखते हैं। मंडियों में उचित भाव मिल नहीं पाता, कोई और विकल्प है नहीं। शीतगृहों का किराया, भाड़ा किसानों की लागत बढ़ाता है। 70 प्रतिशत शीतगृह भर चुके हैं|
फुटकर बाजार में आलू की उपलब्धता के आधार पर भाव तय किए जाते हैं। दुकानों पर आलू की कीमत 25 रुपये प्रतिकिलो है। जबकि, किसानों को आठ से 10 रुपये प्रतिकिलो ही मिल रहा है। आलू के निर्यात के रास्ते खुलेंगे तो किसानों को उचित भाव के लिए नहीं जूझना पड़ेगा। एफपीओ कोमोलिका फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी द्वारा इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
एफपीओ के चेयरमैन आरपी पचौरी बताते हैं कि अलीगढ़ में आलू की पैदावार अधिक है, लेकिन किसानों का उचित कीमत नहीं मिल पाती। विदेशों में आलू का निर्यात होने से किसानों को कई गुना लाभ होगा। एफपीओ द्वारा डीजीएफटी व एपीडा में लाइसेंस के लिए सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं।
आलू की विदेश भेजी जाने वाली प्रजातियों में चिपसोना वन, चिपसोना थ्री, चिपसोना फोर, एलआर, फ्राइसोना हैं, जो चिप्स आदि उत्पाद बनाने के काम में आते हैं। भोजन में प्रयोग होने वाले कुफरी बहार, कुफरी मोहन, ख्याति आदि प्रजातियों के आलू भी किए गए। आलू शीतगृहों में रखवा दिए हैं। एफपीओ के चेयरमैन ने बताया कि इन प्रजातियों का पहले यहां ट्रायल किया गया था।