जलवायु परिर्वतन से निपटने और जमीन की उर्वरक क्षमता को बनाए रखने के लिए फसल विविधिकरण पर जोर दे रहे हैं| जिसके तहत कई राज्य सरकारें मक्का की खेती पर अधिक ध्यान दे रहे हैं| मोटे और ताकतवर अनाज में मक्का का प्रमुख स्थान है|
असल में इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मक्का रिसर्च (ICAR-IIMR) लुधियाना ने मक्के की 4 हाईब्रिड किस्म जारी की है| जिसमें पहली कम फाइटिक एसिड मक्का की हाइब्रिड किस्म पीएमएच 1-एलपी भी शामिल है| PMH1-LP के साथ ही IMH 222, IMH 223 और IMH 224 भी जारी की है| यह हाईब्रिड किस्में मक्के की व्यावसायिक खेती करने वाले किसानों के लिए बेहद ही फायदेमंद मानी जा रही हैं|
मौजूदा समय में देशभर के किसानों के पास मक्के की पीएमएच 1 किस्म है|जिसका प्रयोग किसान मक्का की बुवाई करते हैं|
असल में वर्ष 2007 में पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने पीएमएच 1 किस्म को विकसित किया था| जिसका उन्नत वर्जन पीएमएच 1-एलपी को माना जा रहा है| यह एक हाईब्रिड किस्म है, जिसे IIMR लुधियाना ने जारी किया है| IIMR के एक बयान के अनुसार पीएमएच 1-एलपीउत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (एनडब्ल्यूपीजेड) में वाणिज्यिक खेती के लिए जारी किया गया है, जो देश में पहला कम फाइटेट मक्का हाइब्रिड है|
IIMR लुधियाना की तरफ से जारी की गई मक्के की पीएमएच 1-एलपी किस्म को व्यवासायिक खेती के लिए फायदेमंद माना जा रहा है. यह पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड के मैदानी इलाके के साथ ही पश्चिमी यूपी और दिल्ली के किसानों के लिए बेहद ही फायदेमंद मानी जा रही है| जानकारी के मुताबिक पीएमएच 1-एलपी में अपने मूल संस्करण, पीएमएच 1 की तुलना में 36% कम फाइटिक एसिड होता है, जिसमें अकार्बनिक फॉस्फेट की 140% अधिक उपलब्धता होती है|
जानकारी के मुताबिक पीएमएच 1-एलपीकिस्म की उपज क्षमता 95 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक है| यह किस्म मेडिस लीफ ब्लाइट, टरसिकम लीफ ब्लाइट, चारकोल रोट जैसे प्रमुख रोगों के लिए मध्यम प्रतिरोध है और साथ ही मक्का स्टेम बेधक और फॉल आर्मीवर्म जैसे कीट भी हैं. पोल्ट्री क्षेत्र में हाइब्रिड के महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है|
चारा उद्योग में मक्का का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है| कुक्कुट क्षेत्र ऊर्जा स्रोत के लिए मक्के के दानों पर अत्यधिक निर्भर है| मक्के के दानों में फाइटिक एसिड प्रमुख पोषण-विरोधी कारकों में से एक है जो लोहे और जस्ता जैसे विभिन्न खनिज तत्वों की जैव-उपलब्धता को प्रभावित करता है|