राजू सजवाण
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के चार चरण पूरे हो चुके हैं। तीसरे चरण के लिए जब मतदान हो रहा था तो ठीक उसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्नाव में भाषण देते हुए कहा, “छुट्टा जानवरों से आप लोगों को जो परेशानी होती है, उसे दूर करने के लिए 10 मार्च के बाद नई व्यवस्था बनाई जाएगी। जो पशु दूध नहीं देता है, उसके गोबर से भी आय हो, ऐसा इंतजाम किया जाएगा।”
प्रधानमंत्री ने किसानों से नई व्यवस्था का वादा तो कर दिया है, लेकिन इस तरह की व्यवस्था तो पहले से ही सरकार ने की हुई है। सरकार की इस योजना को गोबर धन योजना कहा जाता है, लेकिन यह योजना अभी किस हाल में है, डाउन टू अर्थ ने इसकी पड़ताल की।
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत अप्रैल 2018 में इस गोबर धन योजना की शुरुआत की गई थी। इसका मकसद गांवों को स्वच्छ बनाना था और ग्रामीणों की आमदनी बढ़ाना था। कहा गया था कि गोबर सहित खेती के अपशिष्ट को सरकार खरीदकर उसका मशीनीकरण करके बायो गैस तैयार करेगी।
लेकिन यह गोबर धन योजना किस हाल में है? संसद के बीते शीतकालीन सत्र में सदन में रखी गई कृषि, पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की संसदीय समिति की रिपोर्ट में इस पर विस्तार से बात की गई। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने कमेटी को बताया कि जलशक्ति मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की ओर से गोबर धन योजना चलाई जा रही है। इस स्कीम के तहत किसानों से गोबर की खरीद की जाती है।
सरकार ने यह भी कमेटी को बताया कि गोबर धन स्कीम को मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी की स्कीम नेशनल बायोगैस एंड ऑर्गेनिक मैन्यौर प्रोग्राम से जोड़ा जा रहा है, ताकि छोटे-छोटे बायोगैस प्लांट लगाकर किसानों को उससे सीधे जोड़ा जा सके। इससे जहां किसान जहां बायो गैस प्लांट से उत्पन्न वाली बिजली इस्तेमाल कर सकेंगे, बल्कि उनकी आमदनी भी बढ़ेगी।
सरकार के मुताबिक, गुजरात में एक प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली है और तमिलनाडु में एक प्रोजेक्ट सबमिशन स्टेज पर है। नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड भी डेयरी सहकारी संघों और राज्य सरकारों से इस योजना से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। अब तक 25 डेयरी सहकारी संघ इस स्कीम से जुड़ने के लिए सहमत हो चुके हैं।
बीती 19 फरवरी 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंदौर में एक बायो-सीएनजी बनाने वाले गोवर्धन प्लांट का उदघाटन किया। यह एक बड़ा कदम माना जा रहा है, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इसमें मवेशियों के गोबर का कितना इस्तेमाल किया जाएगा।
इस स्कीम के तहत अब तक केवल घरों या डेयरियों में पल रहे मवेशियों का ही गोबर लिया जा रहा है। खुद सरकार ने स्थायी समिति को दिए अपने जवाब में कहा है कि गोबर का इस्तेमाल प्राकृतिक कृषि विकास योजना के तहत गोबर की खरीद की जा रही है, लेकिन इस योजना के तहत छुट्टा मवेशियों का गोबर खरीदने की अनुमति नहीं है।
स्थायी समिति सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं दिखी। समिति ने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा जो जवाब दिया गया है, वह औपचारिक (केजुअल) है। विभाग को पशुपालन एवं डेयरी विभाग से मिलकर मवेशियों के गोबर की खरीद को लेकर स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। कमेटी ने भी माना था कि गोबर खरीद की योजना छुट़्टा मवेशियों की समस्या का समाधान हो सकता है।
एक बायो गैस प्रोजेक्ट से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं कि दरअसल यह बहुत फर्क पड़ता है कि गोबर की गुणवत्ता कैसी है, क्योंकि बायो गैस या जैविक खाद में वही गोबर इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी गुणवत्ता काफी अच्छी हो और गोबर की गुणवत्ता तब ही अच्छी होती है, जब मवेशी ने पौष्टिक आहार खाया हो। जबकि छुट्टा मवेशियों को पौष्टिक आहार तो नसीब ही नहीं होता, बल्कि वे तो सड़कों पर प्लास्टिक तक खाते हैं।
वह जोर देकर कहते हैं कि अगर गोबर की गुणवत्ता अच्छी नहीं होगी तो बायो गैस प्लांट या जैविक खाद प्लांट की लागत तक नहीं निकलेगी, मुनाफा तो दूर की बात है। बल्कि केमिकल या प्लास्टिक खाने वाले मवेशियों का गोबर नुकसान तक पहुंचा सकता है। वह भी यह भी कहते हैं कि छुट्टा मवेशियों का गोबर इकट्ठा करना भी एक बड़ी समस्या है। यही वजह है कि अभी सरकार छुट्टा मवेशियों का गोबर नहीं खरीद रही है।
हरियाणा के करनाल स्थित आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्स के पूर्व प्रमुख डीके सडाना कहते हैं कि गोबर खरीदने से छुट्टा मवेशियों की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है, लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि देशी गायों या मवेशियों का गोबर जितना फायदेमंद होता है, उतना विदेशी या क्रॉस ब्रीड मवेशियों का नहीं होता, जबकि 60 प्रतिशत छुट्टा मवेशी क्रॉस ब्रीड या विदेशी नस्ल के हैं।
सडाना चिंता जताते हुए कहते हैं कि पिछले कुछ सालों के दौरान देश में देशी मवेशियों की बजाय विदेशी मवेशियों के प्रति रुझान बढ़ा है, जो जल्दी ही दूध देना बंद कर देते हैं और उनके अनुत्पादक होने के बाद पशुपालक उन्हें छोड़ देते हैं।
अब यह सवाल उठता है कि जब छुट्टा मवेशियों का गोबर काम का ही नहीं है तो फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इसे छुट़्टा मवेशियों की समस्या का समाधान क्यों बताया जा रहा है?
इस समाधान को दो तरह से पेश किया जा रहा है। एक, सरकार घर से अगर गोबर खरीदेगी तो लोग मवेशियों को छोड़ेंगे ही नहीं। दूसरा, छुट्टा घूम रहे मवेशियों के लिए गौशाला में रखा जाएगा।
हालांकि ये दोनों समाधान उत्तर प्रदेश में आजमाए जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश सरकार गाय पालने वाले लोगों को 30 रुपए प्रति गाय दे रही है, लेकिन जिस तरह चारे की कीमत बढ़ रही है, उस हिसाब से यह पैसा काफी कम पड़ रहा है। पशुपालकों का कहना है कि केवल चारे की ही बात की जाए तो एक गाय 70 से 80 रुपए का चारा खाती है। बल्कि महंगाई की वजह से चारे की कीमत भी लगातार बढ़ रही है।
झांसी में स्थित श्रीकामधेनु गौशाला के संचालक प्रिंस जैन कहते हैं कि आज से पांच साल पहले जो गेहूं का भूसा पांच से छः रुपये प्रति किलो था आज उस भूसे का दाम 13 रुपये किलो हो गया। जो चोकर की बोरी 500 रुपये की आती थी, अब वह 900 रुपये तक हो चुकी है। इसके अलावा बिजली बिल, लेबर खर्च भी महंगा हो चुका है।
यहां दिलचस्प बात यह है कि जब 2014 में पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार बनी थी, तब सांसद आदर्श ग्राम योजना की भी शुरुआत की गई थी। इस योजना के तहत सांसदों को अपने-अपने क्षेत्र में एक गांव को गोद लेकर उसे आदर्श ग्राम बनाना था। इस आदर्श ग्राम में गोबर बैंक बनाने का भी प्रस्ताव था, लेकिन कितने आदर्श ग्रामों में गोबर बैंक स्थापित हो पाएं, कम से कम सरकारी विज्ञापनों या प्रेस विज्ञप्तियों में कहीं इसका उल्लेख नहीं मिलता।
उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में 50 लाख से अधिक छुट्टा मवेशियों की गणना 2019 में की गई थी। इनमें हर साल औसतन 10 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। ऐसे में, अब देखना यह है कि छुट्टा मवेशियों की समस्या का समाधान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 मार्च के बाद कैसे करते हैं?
By – डाउन टू अर्थ से