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उत्तर प्रदेश सहित 9 राज्यों में बुवाई को उपलब्ध अधिक उपज देने वाला सुबौर मंसूरी धान

मई और जून महीने में किसान धान की नर्सरी की तैयारी शुरु कर देते हैं। आमतौर पर किसान धान के कम खर्च पर ज्यादा पैदावार वाले धान के बीजों की तलाश करते हैं। किसानों को धान के ऐसे बीजों की भी तलाश रहती है जो तैयार होने में कम समय ले। गौरतलब है कि बासमती जैसी किस्मों की पैदावार भी कम होती है और उन्नत प्रजाति के धान को सिंचाई की अधिक पानी की दरकार होती है। कम लागत वाली धान की नई किस्म में सुबौर मंसूरी धान की प्रजाति अच्छी है। सबौर मंसूरी धान की खासियत यह है कि यह कम पानी, खाद और कम खर्च में सामान्य धान से ज्यादा उपज देता है। धान की यह नई किस्म सबौर मंसूरी लगभग डेढ़ गुना अधिक उपज देती है। केंद्र सरकार की ओर से इसके लिए नोटिफिकेशन एक महीने में जारी किया जाएगा।
किसान सबौर मंसूरी धान की खेती इसी खरीफ सीजन में कर सकेंगे। इस धान की खास बात यह है कि इसके बीज बिना रोपाई के सीधे बोये जा सकते हैं। साथ ही इसका औसत उत्पादन 65 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। अगर अधिकतम उत्पादन की बात करें तो यह 122 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। इसके अलावा सीधी बुआई के लिए सबौर मंसूरी धान 135 से 140 दिन में तैयार हो जाता है। आमतौर पर किसान धान की ऐसी किस्मों की खेती करना चाहते हैं जिससे उनकी फसल जल्दी तैयार हो जाए। साथ ही उत्पादन भी अच्छा मिले। देश में अभी तक ज्यादातर किस्मों को तैयार होने में लगभग 130 से 140 दिन का समय लगता है। जिसके कारण आगे खेती करने में देरी होती है। किसानों की इन्हीं समस्याओं और बाधाओं को दूर करने के लिए बाजार में मंसूरी धान की नई किस्म आई है। आइए जानते हैं इस नई किस्म की से धान की कितनी पैदावार मिलेगी। अब सबौर मंसूरी धान की खेती इसी खरीफ सीजन में कर सकेंगे। इस धान की खास बात यह है कि इसके बीज बिना रोपाई के सीधे बोये जा सकते हैं। साथ ही इसका औसत उत्पादन 65 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। अगर अधिकतम उत्पादन की बात करें तो यह 122 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। इसके अलावा सीधी बुआई के लिए सबौर मंसूरी धान 135 से 140 दिन में तैयार हो जाता है।
भारत में उत्तर प्रदेश समेत नौ राज्यों में सबौर मंसूरी धान का उत्पादन संभव होगा। इसमें बंगाल, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना और पुडुचेरी शामिल हैं। धान की इस नई किस्म सबौर मंसूरी की खोज बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की है। पिछले 4 वर्षों से अखिल भारतीय एकीकृत धान सुधार परियोजना के तहत बिहार समेत देश के 19 राज्यों के 125 केंद्रों पर इसका परीक्षण किया गया।

 

 

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