भारत -चीन सीमा पर स्थित उत्तरकाशी जिला उत्तराखंड सूबे में फलों के लिए प्रसिद्ध है। इस बार यहां दो दिवसीय राज्य स्तरीय सेब महोत्सव -२०२३ का आयोजन किया गया। महोत्सव का शुभारंभ सूबे के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने किया । श्री जोशी ने सेब महोत्सव में लगी सेब की विभिन्न प्रजातियों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
गणेश जोशी ने हर्षिल को फलपट्टी की घोषणा भी की। इस दौरान मंत्री ने ड्रोन स्प्रेयर मशीन का भी अवलोकन किया। इस दौरान मंत्री ने वाइब्रेंट विलेज के तहत ग्रामीणों और किसानों की समस्या को भी सुना। उन्होंने क्षेत्र के फल उत्पादकों से देर तक चर्चा की।
प्रदर्शनी में रेड चीफ, ऑर्गन स्पर, सुपर चीफ, गाला, गोल्डन डेलीशियस, रॉयल डेलीशियस, रेड डेलीशियस, फैनी, रॉयमर, जोनाथन, बकिंघम, रेड ब्लाक, जिंजर गोल्ड, पिंक लेडी, ग्रेमी स्मिथ, रेड गोल्डन, ग्रीन स्वीट, रेड फ्यूजी, क्रेब एप्पल सहित कई सेब की प्रजाति प्रदर्शित की गई।
इस अवसर पर कृषि मंत्री गणेश जोशी ने वाईब्रेन्ट विलेज हर्षिल घाटी में उत्तराखण्ड के बहु प्रसिद्ध सेब उत्पादक क्षेत्र हर्षिल उत्तरकाशी में उद्यान विभाग द्वारा दो दिवसीय “राज्य स्तरीय सेब महोत्सव – 2023” के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की। कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा इस महोत्सव में राज्य में उत्पादित विभिन्न प्रकार की सेब प्रजातियों का संकलन देखने को मिला। साथ ही सेब उत्पादन की विभिन्न तकनीकों का सजीव प्रदर्शन, विभिन्न कम्पनियों/संस्थानो (पौधशाला प्रबन्धन, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, औद्यानिक यन्त्रीकरण, तुड़ाई उपरान्त प्रबन्धन, पैकेजिंग, विपणन एवं प्रसंस्करण) एवं विभिन्न सेब उत्पादकों द्वारा भौतिक रूप से प्रतिभाग किया गया है।
इस प्रकार के आयोजन से राज्य में सेब के उत्पादन को व्यवसायिकता के आधार पर उच्च स्तर तक ले जाया जा सकता है। उन्होंने कहा देश में कुल 3.05 लाख हेक्टेयर में 26.60 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन किया जा रहा है, जिसमें उत्तराखण्ड में 0.65 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन किया जा रहा है, जिसमें सर्वाधिक उत्पादन जनपद उत्तरकाशी में लगभग 45 प्रतिशत (29018 मीट्रिक टन) है।
उत्तराखण्ड के समस्त पर्वतीय जनपदों में सेब का उत्पादन किया जा रहा है, जिसमें मुख्य रूप से जनपद उत्तरकाशी, देहरादून, अल्मोडा, नैनीताल, एवं चमोली सम्मिलित हैं। उन्होंने कहा वर्ष 2020-21 के आकडो के अनुसार में राज्य में उत्पादित सेब की उत्दपाकता मात्र 2.50 मीट्रिक टन है। आवश्यक है कि उच्च गुणवत्तायुक्त पौध रोपण सामग्री के माध्यम से नये बागानो की स्थापना की जाए तथा पुराने अनुत्पादक बागों का जीर्णोद्वार कर उत्पादकता में वृद्वि की जाय।