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तीन वर्षो में बढ़ी बिहार में डेढ़ गुणा मरचा धान की खेती, अब मिला ‘जीआई टैग’

बिहार में मरचा धान की खेती, स्वाद और लोकप्रियता पूर्वी उत्तर प्रदेश के काला नमक धान जैसी है। काली मिर्च की तरह से होने के कारण इसे मरचा धान बोला जाता है। जीआई टैग’मिलने के बाद इस धान की पहचान अब देश-दुनिया में होने की उम्मीद की जा रही है।

इस चावल के दानों और गुच्छों में एक अनोखी सुगंध होती है जो इसे अलग बनाती है। यह चावल अपनी सुगंध, स्वादिष्टता और सुगंधित चूड़ा (चावल के टुकड़े) बनाने के गुणों के लिए प्रसिद्ध है। पका हुआ चावल फूला हुआ, चिपचिपा नहीं, मीठा और पॉपकॉर्न जैसी सुगंध के साथ आसानी से पचने योग्य होता है। धान की खेती करने वाले किसानों के पंजीकृत संगठन, मार्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह की ओर से जीआई टैग के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया गया था।

(चावल को) स्थानीय तौर पर मिर्चा, मरचैया, मरिचिया आदि नामों से भी जाना जाता है। पौधों, अनाजों और गुच्छों में एक अनोखी सुगंध होती है जो इसे अलग बनाती है,” जर्नल ने कहा।

विकास पर खुशी व्यक्त करते हुए, बिहार के कृषि मंत्री ने मरचा धान को जीआई टैग दिये जाने पर कहा -“इससे मार्चा चावल के उत्पादन को और बढ़ावा मिलेगा। इससे मार्चा चावल की खेती करने वाले किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।”

मार्चा चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में पश्चिम चंपारण जिले के मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर और चनपटिया ब्लॉक शामिल हैं।

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