झांसी के रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि बुन्देलखण्ड में मूंगफली की खेती तेजी से बढ़ रही. इसकी उत्पादकता बढ़ाकर अधिक लाभ लिया जा सकता। बुन्देलखण्ड की आबोहवा और मिट्टी के गुण मूंगफली बोने में सहायक हैं।
मूंगफली की खेती के लिए कम जल भराव वाली, भुरभुरी दोमट एवं बलुई दोमट अथवा लाल मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। भूमि की तैयारी हेतु सर्वप्रथम मिट्टी पलटने वाले हल या हेरो कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद में सामान्य कल्टीवेटर से दो जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा होने के बाद पाटा लगाकर समतल किया जाना चाहिए।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मूंगफली की उन्नत किस्मों में टी जी 37 ए, दिव्या, मल्लिका, एच एन जी 123, नित्या हरिता एवं फुले भारती प्रमुख हैं। बुवाई के लिए उचित समय जुलाई का प्रथम पखवाड़ा होता. मूंगफली की गुच्छेदार किस्मों के लिए बीज की मात्रा 75-80 कि.ग्रा. प्रति हे. एवं फैलने वाली किस्मों के लिये 60-70 कि.ग्रा. प्रति हे. उपयोग में लेना उचित रहता।
गुजरात से मंगाया गया मूंगफली की धरनीं किस्म का बीज किसानों को मुनाफा देने में सहायक और रोगरोधी बताया गया है। खेती वैज्ञानिकों ने कहा है कि मूंगफली बोने वाले किसानों को अपने खेतों में कीटों की जानकारी मिलते ही वैज्ञानिकों ने जारी एडवायजारी में कही। उन्होंने कहा कि दीमक के रोग से बचने अंतिम जुताई में नीम की खली का प्रयोग करें।
देश में गुजरात मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। उसके बाद राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल आते हैं। मूंगफली की फसल खरीफ और रबी, दोनों मौसमों में होती है। कुल पैदावर में खरीफ मौसम का हिस्सा 75 प्रतिशत से अधिक है। उल्लेखनीय है कि 2020-21 के दौरान भारत ने 5381 करोड़ रुपये की कीमत की 6.38 लाख टन मूंगफली का निर्यात किया है। मूंगफली मुख्य रूप से इंडोनेशिया, वियतनाम, फिलिपींस, मलेशिया, थाईलैंड, चीन, रूस, युक्रेन, संयुक्त अरब अमीरात और नेपाल जैसे देशों को निर्यात की जाती है।