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पंजाब में बाढ़ के बावजूद बांसमती धान की करीब 75 फीसदी बुवाई पूरी

बाढ़ और लगातार खेती विरोधी मौसम के बावजूद सबसे ज्यादा बांसमती चावल पैदा करने वाले पंजाब में बांसमती चावल की जोरदार बुवाई की गई है। हालांकि बाढ़ के खेतों में पानी भरा होने की वजह से बुवाई का रकबा बीते साल से कम है। जिन जिलों में बाढ़ का असर है वहां दोबारा बुवाई के बाद फिर गणना की जायेगी।

मिली जानकारी के अनुसार पंजाब अब तक काफी बाधाओं के बावजूद अपने बासमती बुआई लक्ष्य का 75% पूरा करने में कामयाब रहा है। पंजाब के 19 जिलों के लगभग 1,472 गांवों में भारी बाढ़ के प्रभावित होने के बावजूद, राज्य इस वर्ष लगभग 4.50 लाख हेक्टेयर भूमि पर बासमती की बुआई पूरी करने में कामयाब रहा है, जबकि प्रारंभिक लक्ष्य 6 लाख हेक्टेयर (बासमती की खेती के लिए) था। सरकार को इस वर्ष गैर-बासमती (धान) और बासमती किस्मों सहित चावल की फसल के तहत 31.67 लाख हेक्टेयर भूमि की उम्मीद थी।

कृषि विभाग (पंजाब) की क्षेत्रीय रिपोर्टों के अनुसार, इस वर्ष लगभग 30.38 लाख हेक्टेयर भूमि पर चावल की बुआई पूरी हो चुकी है। इसमें से राज्य में बाढ़ आने से पहले लगभग 25.88 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई की गई थी। बासमती की बुआई बाधित हो गई क्योंकि यह आमतौर पर धान के 25-30 दिन बाद की जाती है और इसी दौरान बाढ़ आ गई। जुलाई के दूसरे सप्ताह के दौरान भारी बारिश से राज्य में लगभग 2.38 लाख हेक्टेयर (ज्यादातर धान का क्षेत्र) भूमि जलमग्न हो गई थी।

बाढ़ का पानी उतरने के बाद पता चला कि, करीब 1.50 लाख हेक्टेयर धान जस का तस पड़ा हुआ है, यानी बच गया है। लगभग 86,500 हेक्टेयर भूमि पर फसल खराब हो गई। अधिकांश क्षतिग्रस्त धान के खेतों में अभी भी पानी जमा है और अब उन पर दोबारा रोपाई की उम्मीद है। शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक पहले दोबारा रोपाई का अनुमान 1 लाख हेक्टेयर था।

सूबे के बाढ़ प्रभावित इलाकों में दोबारा रोपाई में देरी के कारण इस साल धान के रकबे में कुछ हद तक कमी आ सकती है।जिन क्षेत्रों में पुनः रोपाई की आवश्यकता होती है, वहां कुछ किसान कम अवधि की फसल बासमती का विकल्प चुन सकते है।इसके अतिरिक्त, किसानों को दालों जैसी अन्य कम अवधि वाली फसलें उगाने पर विचार करने की सलाह दी गई है, लेकिन बारिश के मौसम की शेष अवधि के कारण कई लोग धान और बासमती को पसंद करते हैं, जो बाढ़ को छोड़कर फसल के लिए उपयुक्त है।बदलते मौसम चक्र के मद्देनजर भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) दोआबा ने सुझाव दिया है कि, किसानों को साल भर चलने वाली गन्ने की फसल की खेती पर विचार करना चाहिए, जिसकी बुआई का मौसम सितंबर में शुरू होगा। संगठन के एक पदाधिकारी ने कहा, इस फसल की सिफारिश की जाती है क्योंकि यह अन्य फसलों की तुलना में लंबे समय तक बाढ़ का सामना कर सकती है।

बीकेयू दोआबा के महासचिव सतनाम सिंह साहनी ने कहा कि गन्ना एक वार्षिक फसल है और किसान इसके साथ तब तक अंतरफसल कर सकते हैं जब तक कि यह एक निश्चित ऊंचाई तक न पहुंच जाए।राज्य के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में भी गन्ने की फसल की खेती करना अधिक उचित है, क्योंकि यह फसल अन्य फसलों की तुलना में अधिक दिनों तक बाढ़ का सामना कर सकती है और इससे बहुत जरूरी विविधीकरण (धान से अन्य फसलों तक) में भी मदद मिलेगी।सतनाम सिंह साहनी ने कहा, सरकार को इस पर विश्लेषण करना चाहिए और किसानों को फसल क्षति के कारण होने वाले भारी नुकसान से बचाना चाहिए। पंजाब में प्रमुख बासमती उत्पादक जिलों में अमृतसर, फाजिल्का, तरनतारन और गुरदासपुर शामिल है, जबकि धान की अधिक खेती संगरूर, पटियाला और लुधियाना जैसे जिलों में दर्ज की गई है। कृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि बाढ़ के बावजूद, चावल के क्षेत्र को 30 लाख हेक्टेयर से घटाकर 20 लाख हेक्टेयर करने की आवश्यकता के बावजूद, पंजाब में इस साल लगभग 25 लाख हेक्टेयर धान (बासमती को छोड़कर) की खेती होने की उम्मीद है।

एक ख़बर के मुताबिक पंजाब कृषि विभाग के निदेशक डॉ. गुरविंदर सिंह ने कहा कि धान और बासमती की खेती के अंतिम आंकड़े बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पुन: रोपाई के बाद निर्धारित किए जाएंगे। उन्होंने इस वर्ष बासमती की खेती में वृद्धि को लेकर उम्मीद जताई है। गौरतलब है कि
पंजाब और हरियाणा में पैदा बांसमती का खाड़ी देशों में निर्यात किया जाता है।

PHOTO CREDIT – google.com

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