पिछले साल यहां, जहां कपास की कीमतें 12 से 14 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं। वहीं इस साल कपास की कीमतें 7 से 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है। इसके अलावा, विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र के कुछ जिलों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से 40 फीसदी फसल बर्बाद होने से कपास की खेती करने वालों किसानों का संकट और बढ़ गया है।
इस साल कपास की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. कपास की कीमतों में 7000 रुपये तक की गिरावट आई है. दरअसल, विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में कपास की कीमतों में बढ़ोतरी के कोई संकेत नहीं मिलने की वजह से किसान इन दिनों काफी चिंतित है।
विदर्भ और मराठवाड़ा के पिछड़े इलाकों में सोयाबीन के बाद कपास लोकप्रिय फसल है, जिस पर किसान आजीविका के लिए निर्भर हैं। यहां के 115 तहसीलों को कपास उत्पादक क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया गया है। वहीं कपास उगाने वाली 115 तहसीलें राज्य के औरंगाबाद, जालना, परभणी, हिंगोली, नांदेड़, बीड, बुलढाणा, अमरावती, नागपुर, अकोला, यवतमाल, वर्धा, चंद्रपुर, नासिक, धुले, नंदुरबार, जलगाँव और अहमदनगर जिलों में हैं।
कपास कृषि क्षेत्र का समर्थन करने के लिए केंद्र और राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक है। कीमतों में गिरावट के अलावा कम निर्यात से भी कीमतों पर असर पड़ा है. पिछले साल किसानों ने 60 लाख गांठ कपास का निर्यात किया था। इसके विपरीत इस वर्ष निर्यात केवल 20 लाख गांठ था। इसके अलावा, अन्य देशों से 10 लाख कपास गांठों के आयात से भी कीमतों में गिरावट आई है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 80 लाख से अधिक किसान कपास की खेती में लगे हुए हैं। पिछले साल जब रुई की कीमतें 14,000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थीं तो रिकॉर्ड 102 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती हुई थी। हालांकि, इस साल सीजन के शुरुआत में ही लगभग 40 प्रतिशत कपास की फसल बेमौसम बारिश में नष्ट-क्षतिग्रस्त हो गई। इससे इस साल एक बड़ा कृषि-संकट पैदा हो गया।