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कृषि वैज्ञानिकों की सलाह : गेहूं,चना, आलू व सब्जियों की इस तरह करें बुवाई

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्‍ली द्वारा आस-पास के क्षेत्रों के लिए कृषि सलाह जारी की है। इसमें बताया गया है की किसान धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें इससे मृदा की उर्वकता बढ़ती है, साथ ही किसान धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग 4 कैप्सूल/हेक्टेयर की दर से करें।

जारी सलाह में बताया गया है कि वर्तमान मौसम में किसान गेहूं, चना, सरसों, आलू, मटर, लहसून, गाजर, पालक, शलगम, बथुआ, गाँठ गोभी आदि फसलों की विभिन्न किस्मों की बुआई का काम कर सकते हैं। समय पर बोई गई सरसों की फ़सल में बगराडा कीट (पेटेंड बग) की निरंतर निगरानी करते रहें तथा फ़सल में विरलीकरण तथा खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें।

संस्थान द्वारा जारी सलाह में बताया गया है कि गेहूं की बुवाई हेतू तैयार खेतों में पलेवा तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें। पलेवे के बाद यदि खेत में ओट आ गई हो तो उसमें गेहूँ की बुवाई कर सकते है। उन्नत प्रजातियाँ- सिंचित परिस्थिति- एच. डी. 3226, एच. डी. 18, एच. डी. 3086, एच. डी. 2967। बीज की मात्रा 100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर। जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरपाईरिफाँस (20 ईसी) 5 लीटर प्रति हैक्टर की दर से पलेवा के साथ दें। नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर होनी चाहिये।

इस तरह करें सरसों की इन किस्मों की बुआई किसान सरसों की बुवाई में ओर अधिक देरी न करें। मिट्टी जांच के बाद यदि गंधक की कमी हो तो 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से अंतिम जुताई पर डालें। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में- पूसा विजय, पूसा सरसों-29, पूसा सरसों-30, पूसा सरसों-31। बीज दर– 5-2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड की दर से बुआई करें। बुवाई से पहले खेत में नमी के स्तर को अवश्य ज्ञात कर ले ताकि अंकुरण प्रभावित न हो। बुवाई से पहले बीजों को केप्टान 2.5 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें। बुवाई कतारों में करना अधिक लाभकारी रहता है। कम फैलने वाली किस्मों की बुवाई 30 सें.मी. और अधिक फैलने वाली किस्मों की बुवाई 45-50 सें.मी. दूरी पर बनी पंक्तियों में करें। विरलीकरण द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सें.मी. कर ले।

वर्तमान मौसम आलू की बुवाई के लिए अनुकूल है अतः किसान आवश्यकतानुसार आलू की किस्मों की बुवाई कर सकते हैं। उन्नत किस्में- कुफरी बादशाह, कुफरी ज्योति (कम अवधि वाली किस्म), कुफरी अलंकार, कुफरी चंद्रमुखी। कतारों से कतारों तथा पौध से पौध की दूरी 45 X 20 या 60 X 15 से.मी. रखें। बुवाई से पूर्व बीजों को कार्बंडिजम 0 ग्रा. प्रति लीटर घोल में प्रति कि.ग्रा. बीज पाँच मिनट भिगोकर रखें। उसके उपरांत बुवाई से पूर्व किसी छायादार जगह पर सूखने के लिए रखें।

मटर की बुआई तापमान को ध्यान में रखते हुए मटर की बुवाई में ओर अधिक देरी न करें अन्यथा फसल की उपज में कमी होगी तथा कीड़ों का प्रकोप अधिक हो सकता है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में -पूसा प्रगति, आर्किल। बीजों को कवकनाशी केप्टान या थायरम 2.0 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से मिलाकर उपचार करें उसके बाद फसल विशेष राईजोबियम का टीका अवश्य लगायें। गुड़ को पानी में उबालकर ठंडा कर ले और राईजोबियम को बीज के साथ मिलाकर उपचारित करके सूखने के लिए किसी छायेदार स्थान में रख दें तथा अगले दिन बुवाई करें।

किसान इस समय लहसुन की बुवाई कर सकते है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में –जी-1, जी-41, जी-50, जी-282 की बुआई कर सकते हैं। खेत में देसी खाद और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। इस तरह करें चना की इन किस्मों की बुआई किसान चने की बुवाई इस सप्ताह कर सकते है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। छोटी एवं मध्यम आकार के दाने वाली किस्मों के लिए 60–80 कि.ग्रा. तथा बड़े दाने वाली किस्मों के लिए 80–100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई 30–35 सें. मी. दूर कतारों में करनी चाहिए। प्रमुख काबुली किस्में- पूसा 267, पूसा 1003, पूसा चमत्कार (बी.जी. 1053); देशी किस्में – सी. 235, पूसा 246, पी.बी.जी. 1, पूसा 372। बुवाई से पूर्व बीजों को राइजोबियम और पी.एस.बी. के टीकों (कल्चर) से अवश्य उपचार करें।

इस मौसम में किसान गाजर की बुवाई मेड़ो पर कर सकते है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में- पूसा रूधिरा। बीज दर 4.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़। बुवाई से पूर्व बीज को केप्टान 2 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें तथा खेत में देसी खाद, पोटाश और फाँस्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। गाजर की बुवाई मशीन द्वारा करने से बीज 1.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है जिससे बीज की बचत तथा उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।

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