इस रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों के कृषि ऋण माफी का कोई स्थायी हल नहीं है| साथ ही इस नाबार्ड की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों के ऋण माफी का संबंधित संस्था पर बुरा असर होता है| दरअसल, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जरूरतमंद किसानों की मदद के लिए शॉर्ट टर्म और लांग टर्म लोन देने पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है| इस रिपोर्ट में कृषि लोन से संबंधित कई पहलुओं पर काम डेटा पेश किया गया है|
रिपोर्ट में बताया गया है कि किस-किस चीज का किसानों की खेती पर बुरा असर होता है| साथ ही इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रभावित किसानों को एक बार लोन के तौर सहायता राशि मिलनी चाहिए| भारत में खेती करने वाले किसानों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसलिए किसानों के लिए बिजनेस लोन पर विचार किया जाना चाहिए|
नबार्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों के लिए बिजनेस लोन स्टेक होल्डर के लिए भी फायदेमंद साबित होगा| साथ ही इस पर अगर बेहतर पॉलिसी होगी तो सरकार के साथ-साथ किसानों को भी आसानी होगी| हांलाकि, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों के लिए आसानी हो इसके लिए सरकार को बेहतर व्यवस्था करना होगा|
नाबार्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऐसी घोषणाओं से किसानों में जानबूझकर कर्ज ना लौटाने की प्रवृति बढ़ती हैं और ईमानदार किसानों भी आदतन कर्ज ना लौटाने वाले किसानों की सूची में शामिल हो सकते हैं| इस कारण कर्ज माफी का यह चक्र चलता रहता है| नाबार्ड ने कर्ज माफी को लेकर किसानों का व्यवहार समझने के लिए महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश के कुल 3000 किसानों से बात की थी. जिसके बाद नाबार्ड ने यह रिपोर्ट जारी की है|
रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्ज लेने में पंजाब के किसान अन्य राज्यों से आगे हैं| जिसके तहत पंजाब का एक किसान प्रत्येक साल औसतन 3.4 लाख रुपए का कर्ज लेता है| वहीं उत्तर प्रदेश का किसान प्रत्येक वर्ष औसतन 84000 रुपये और महाराष्ट्र का किसान 62,000 रुपए का कर्ज प्रत्येक साल लेता है|
नाबार्ड ने अपने अध्ययन में पाया है किसान कृषि कर्ज का प्रयोग खेती के अलावा दूसरे अन्य कार्यों में भी करते हैं| अध्ययन में नाबार्ड में पाया है कि किसान क्रेडिड कार्ड पर लिए गए कर्ज का डायर्वजन पंजाब में सबसे अधिक है| वहीं महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में भी कृषि कर्ज का डायवर्जन है, लेकिन इस सूची में उत्तर प्रदेश में सबसे निचले पायदान में है|