केरल मिशन परियोजना ने गन्ने की किस्स Co86032 का सफल परीक्षण किया है. Co86032 की खासियत है कि इसे सिंचाई की कम जरूरत होती है| यानी गन्ने की Co86032 किस्म कम पानी में तैयार हो जाती है| साथ ही यह कीटों के हमले के खिलाफ लड़ने में ज्यादा कारगर है, क्योंकि इसमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक पाई जाती है| साथ ही इससे अधिक उत्पादन भी मिलेगा| वहीं, परीक्षण से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि सस्टेनेबल गन्ना पहल (एसएसआई) के जरिए साल 2021 में एक पायलट प्रोजेक्ट लागू किया गया था. दरअसल, एसएसआई गन्ने की खेती की एक ऐसी विधि है जिसमें कम बीज, कम पानी और कम से कम खाद का उपयोग होता है|
वहीं, कृषि सलाहकार श्रीराम परमशिवम ने कहा कि केरल के मरयूर में पारंपरिक रूप से गन्ने के ठूंठ का उपयोग करके Co86032 किस्म की खेती की जाती थी| लेकिन पहली बार गन्ने की पौध का इस्तेमाल खेती के लिए किया गया है| उन्होंने कहा कि तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने गन्ने की खेती के लिए एसएसआई पद्धति पहले ही लागू कर दी है. नई एसएसआई खेती पद्धति का उद्देश्य कम लागत पर उपज बढ़ाना है|
मरयूर के एक किसान विजयन ने कहा कि प्रायोगिक परियोजना से एक एकड़ भूमि में 55 टन गन्ना प्राप्त हुआ है| ऐसे एक एकड़ में औसत उत्पादन 40 टन होता है और इसे प्राप्त करने के लिए 30,000 गन्ना स्टंप की आवश्यकता होती है| हालांकि, यदि आप रोपाई के दौरान पौध का उपयोग कर रहे हैं, तो आपको केवल 5,000 पौधे की ही जरूरत पड़ेगी| विजयन ने कहा कि अब हमारे क्षेत्र के कई किसानों ने अब एसएसआई विधि से गन्ने की खेती करने का मन बना लिया है|
विजयन ने कहा कि प्रति एकड़ गन्ने के स्टंप की कीमत 18,000 रुपये है, जबकि पौधे की लागत 7,500 रुपये से भी कम है| अधिकारियों के अनुसार, एक महीने पुराने गन्ने के पौधे शुरू में कर्नाटक में एक एसएसआई नर्सरी से लाए गए और चयनित किसानों को वितरित किए गए| अब मरयूर में पौधे पैदा करने के लिए एक लघु उद्योग नर्सरी स्थापित की गई है. मरयूर और कंथलूर पंचायत के किसान बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती करते हैं| मरयूर गुड़ अपनी गुणवत्ता और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है|