चना रबी सीजन की एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, लेकिन इसकी खेती में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है| चने की खेती की सबसे खास बात यह है कि इसकी खेती में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है|
चने की खेती से खेत की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी की भी पूर्ति होती है, साथ ही मिट्टी को उपजाऊ बना देती है. मगर ध्यान रहे कि किसान भाईयों को अपने क्षेत्र के हिसाब से ही चने की विकसित किस्मों (Gram Variety) का चुनाव करना चाहिए.
इसी क्रम में जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University ) द्वारा चने की 3 नई किस्म विकसित की गई हैं. इन किस्मों में हैं–जेजी-11, जेजी-14, जेजी-24 |
चने की इन तीनों नई किस्मों को गर्मी वाले स्थानों पर आसानी से उगाया जा सकता है| इसके पौधे लंबे होते हैं और इसे गेहूं की तरह हार्वेस्टर से भी काटा जा सकता है| जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित चने की जेजी-11, 14 और 24 किस्म की फसल की ऊंचाई 60 सेमी तक होगी, जबकि सामान्य चने की फसल की ऊंचाई 20 सेमी ही होती है|
जेएनकेविवि चना अनुसंधान की मानें, तो चने की जेजी 24 किस्म की ऊंचाई 60 सेमी से अधिक होती है और फली भी पौध में ऊपर की ओर पाई जाती है| पौधे के फैलाव कम होता है, इसलिए हार्वेस्टर से कटाई के दौरान दाने नीचे टूटकर कम गिरते हैं|
ये किस्म करीब 110 से 115 दिन में पक जाती है| इसके दाने आकार में बड़े और कत्थई रंग के होते हैं, साथ ही इसका तना मोटा और मजबूत होता है| इसकी खासियत यह है कि ये पकने पर गिरता नहीं है| ये चना पुख्ता उकता रोग, सूखने और सड़न से खुद को बचाता है| इस किस्म की बुवाई से एक हेक्टेयर में करीब 20 से 25 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त हो सकती है|
जेजी-11, 14 और 24 चने की अन्य खासियत
ये किस्म 110 से 115 दिन में पक जाती हैं|
इसकी फसल, दाना बड़ा, तना मोटा और मजबूत होते हैं|
जेजी-11 और जेजी-14 किसानों की पहली पसंद बना चुका है|
जेजी-11 दक्षिण भारत के लिए खासकर सूखा प्रतिरोधी उच्च उत्पादन वाली किस्म है, जिससे प्रति हेक्टेयर 15 से 18 क्विंटल पैदावार ले सकते हैं|
यह किस्म आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के किसानों के बीच बहुत अधिक पॉपुलर है|