पश्चिम बंगाल में इस सीजन में आलू की बंपर पैदावार किसानों के लिए चिंता का सबब बन गई है, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर सरकार अन्य राज्यों को इसकी सप्लाई न करने की अपनी पॉलिसी पर कायम रही, तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। इससे कीमतों में भारी गिरावट आ सकती है।
कृषि विभाग के अनुसार हुगली में आलू की खेती बड़े पैमाने पर की गई है, जिससे बंपर पैदावार की उम्मीद है। आलू व्यापारियों को डर है कि अगर सरकार इस साल कोई पॉलिसी नहीं बनाती है तो इससे किसानों को परेशानी हो सकती है।
एक रिपोर्ट में कहा गया है हुगली, बर्धमान, दक्षिण 24 परगना और उत्तर बंगाल के कुछ जिलों में राज्य में आलू का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। दूसरी ओर बिहार, ओडिशा, असम जैसे राज्य और बांग्लादेश पश्चिम बंगाल से आयात पर निर्भर हैं। अगर राज्य सरकार इस मामले को गंभीरता से नहीं लेती है तो आलू को लेकर अफरा-तफरी मचने की संभावना है।
मंत्री बेचाराम मन्ना ने कहा, “आलू की पैदावार जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करती है। पूरे मामले पर नजर रखी जा रही है और उसके अनुसार ही निर्णय लिए जाएंगे।” पिछले साल हुगली में 44,000 हेक्टेयर में आलू बोया गया था, लेकिन विपरीत जलवायु के कारण पैदावार प्रभावित हुई और पैदावार 27 टन प्रति हेक्टेयर रही। इस साल खेती का रकबा 92,000 हेक्टेयर है और उम्मीद है कि एक बीघा में 70 बोरी आलू की पैदावार होगी।
कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के उप सचिव शुभजीत साहा ने कहा, “किसानों को कम कीमत मिलने के पीछे एक कारण यह भी है कि राज्य सरकार ने दाम को कम रखने के लिए आलू की दूसरे राज्यों में सप्लाई पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे कोल्ड स्टोरेज में बहुत अधिक स्टॉक हो गया है। मेदिनीपुर में अभी भी करीब दो लाख टन आलू पड़ा हुआ है. इस कारण नए आलू को सही दाम नहीं मिल पा रहा है।”
उन्होंने कहा, “फिलहाल कीमतें 7 रुपये प्रति किलो हैं, जो पिछले साल की तुलना में काफी कम है। अब 50 किलो या एक बोरी आलू 320 रुपये में बिक रहा है और दुकानों पर एक किलो आलू 12 से 16 रुपये के बीच बिक रहा है। कीमतों पर विचार करने के लिए एक सरकारी टास्क फोर्स गठित करने की जरूरत है, क्योंकि किसानों को बाजार भाव से काफी कम कीमत मिल रही है।”