बरसात के मौसम में लगने वाली बीमारियों के कारण न तो पौधे का सही विकास हो पाता है और न ही फल का. ऐसे में वैज्ञानिक विधि से पपीते की फसल का खयाल रखना जरूरी है ताकि आपकी कमाई में कमी न आए| सरकारी आंकडों के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर पपीता 138 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है, जिससे कुल 5989 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है| पपीता की राष्ट्रीय उत्पादकता 43.30 टन /हेक्टेयर है|
1.देश के कई सूबों में इस समय बरसात हो रही है| ऐसे में पपीता को पानी से बचाना अत्यावश्यक है| यदि पपीता के खेत में 24 घंटे पानी रुक गया तो पपीता के पौधे पर इसका सबसे बुरा असर होता है| जल भराव में नुकसान से बचने के लिए इस समय पपीता के आसपास 4-5 इंच ऊंचा घेरा बना देना चाहिए|
2. पपीता को पपाया रिंग स्पॉट विषाणु रोग से बचाने के लिए आवश्यक है कि 2 प्रतिशत नीम के तेल, जिसमें 0.5 मिली /लीटर स्टीकर मिला कर एक-एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवें महीने तक करना चाहिए|
3. उच्च क्वालिटी के फल एवं पपीता के पौधों में रोगरोधी गुण पैदा करने के लिए आवश्यक है कि यूरिया 5 ग्राम, जिंक सल्फेट 04 ग्राम, बोरान 04 ग्राम /लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवें महीने तक करना चाहिए|
4. इस मौसम में पपीता की सबसे घातक बीमारी जड़ गलन के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि क्साकोनाजोल 2 मिली दवा / लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दिया जाय| यह कार्य आठवें महीने तक करना चाहिए और मिट्टी को इस घोल से भिंगोते रहना चाहिए| एक बड़े पौधे के लिए में 5-6 लीटर दवा की घोल की आवश्यकता होती है|
मॉनसून की बारिश में पपीता को बचाना बहुत जरूरी है| सही देखभाल से ही पूरे साल इसमें फल भी लगेगा और किसानों को फायदा होगा| इसके कारण देश के कुछ हिस्से में बहुत बेहतरीन फसल होती है जबकि बाढ़ और जल-भराव वाले हिस्से में इसकी खेती नहीं हो पाती है|