किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है। संसद की कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर स्थायी समिति ने 2025-26 के लिए अनुदान मांगों पर रिपोर्ट जारी की है, जिसमें MSP की कानूनी गारंटी, किसानों की कर्ज माफी और जैविक फसलों को MSP के दायरे में लाने की सिफारिश की गई है।
इसके अलावा, समिति ने पराली प्रबंधन के लिए वित्तीय सहायता, छोटे किसानों के लिए सार्वभौमिक फसल बीमा योजना और कृषि मंत्रालय के नाम में “खेतिहर मजदूरों” को जोड़ने का सुझाव दिया है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इन सिफारिशों का हवाला देते हुए सरकार को घेरा। उन्होंने कहा, “समिति ने पहले भी MSP की कानूनी गारंटी और कर्ज माफी की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही है। अब यह रिपोर्ट फिर से यही दोहरा रही है।”
समिति ने बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) के तहत कृषि उपज की खरीद सीमा 25% से बढ़ाकर 50% करने की भी सिफारिश की है। इससे किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलने की संभावना बढ़ेगी।
अनुसूचित जाति उप-योजना (SCSP) को लेकर समिति ने कैग (CAG) से वार्षिक ऑडिट कराने की सिफारिश की है, जिससे इस योजना में पारदर्शिता बढ़े और सरकार की जवाबदेही तय हो।
इन सिफारिशों के बाद अब सवाल यह है कि क्या सरकार MSP की कानूनी गारंटी पर कोई कदम उठाएगी या इसे एक और रिपोर्ट की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? विपक्ष इसे किसानों के हक की लड़ाई बता रहा है, जबकि सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है। अब देखना होगा कि सरकार संसद में इन सिफारिशों को लेकर क्या रुख अपनाती है।