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राजस्थान : छोटे से गांव का ‘संतरा’, देशभर में है भारी सप्लाई

रेत के धोरो (टीलों)के लिए पहचान रखने वाले राजस्थान का झालावाड़ जिले के पिड़ावा क्षेत्र में इस वर्ष संतरे की बम्पर पैदावार हुई है। यहां का संतरा देश के कोने-कोने व विदेशों में भी काफी पसंद किया जाता है। भारत में नागपुर के बाद झालावाड़ जिले का संतरा सबसे अधिक लोकप्रिय है। संतरे की पैदावार ने जहां देश में क्षेत्र का नाम किया। वहीं किसानों को भी आर्थिक मजबूती भी प्रदान की है।

झालावाड़ जिले में पिड़ावा क्षेत्र के सरोनिया गांव व उसके आस पास के किसान काफी समय पहले से ही संतरा उत्पादन कर रहे है। संतरे की क्वालिटी इतनी बढ़िया है कि किसानों को इसे बेचने के लिए मंडियों के चक्कर भी नही लगाने पड़ते है। यहां का संतरा खरीदने के लिए खुद ही व्यापारी जिले में आ जाते हैं।

सरोनिया गांव के आसपास ही व्यापारी अपना डेरा डाल कर उसे मंडी का स्वरूप देते हैं। यहां से कुछ किसानों की मदद से व्यापारी किसानों के खेत मे ही संतरे से लदे बगीचों का सौदा कर लेते है। बगीचों से मजदूरों के माध्यम से संतरो को तुडवाकर अपनी अस्थायी मंडी में लाते है। वहां मजदूरों से संतरे की ग्रेडिंग व पेकिंग का कार्य होता है। यहीं से इस संतरे के देश के कोने कोने में सप्लाई किया जाता है।

बता दें कि क्षेत्र में लगभग दो दशकों से संतरे का उत्पादन किया जा रहा है। जिसमें पाटीदार बहुल गांव सरोनिया में संतरे की खेती अस्तित्व में आने के बाद गांव की दशा व दिशा बदल गई। इस इलाके में संतरा उत्पादन से हर किसान हर वर्ष लाख रुपये तक कमाई कर रहा है। आर्थिक संपन्नता आने के बाद इस क्षेत्र में शैक्षणिक विकास भी तीव्र गति से हो रहा है। साथ ही गांव के विद्यार्थी अब इंजीनियरिंग व डॉक्टर सहित कई प्रोफेशनल कोर्स को अपना रहे है। संतरा उत्पादन ने यहां किसान खुशहाल हुआ है। बेहतर तरीके से जीवन यापन कर रहा है। नागपुर के बाद सरोनिया में सबसे अच्छी क्वालिटी का संतरा मिलता है।

इस गांव की जागरूकता को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र ने गांव को रोल मॉडल घोषित कर दिया है। ग्रामीणों की वैज्ञानिक सोच का ही नतीजा है कि गुणवत्तापूर्ण संतरे का उत्पादन यहां हो रहा है। इस संतरे की मांग भी काफी है। इसके चलते किसानों को दाम भी अच्छे मिल रहे हैं। गांव में पूरी तरह से कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से खेती की जा रही है।

सरोनियागांव के किसान हर साल दो से तीन बार कृषि वैज्ञानिकों को बुलाकर प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करते हैं। इसमें संतरे के बगीचों में रही परेशानी, बीमारियों से बचाव, उन्नत खेती पर खुलकर चर्चा होती है। इसमें देखा जाता है कि सभी के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन हो रहा है या नहीं। कहीं कम गुणवत्ता का उत्पादन होता है तो इसमें तुरंत प्रभाव से वैज्ञानिकों की सलाह लेते हैं। यहां पर किसी भी बगीचे में रोग का प्रकोप नहीं हो और संतरे की गुणवत्ता बेहतर रहे इसके लिए किसान लगातार प्रयासरत हैं।

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