ज्यादातर देशों में भारत से ही मसूर की दाल का निर्यात होता है| ऐसे में जरूरी है कि मसूर की उन्नत किस्मों का ही चुनाव करके बुवाई की जाये| कृषि विशेषज्ञों की मानें तो हर राज्य की मिट्टी के हिसाब से मसूर की कई उन्नत किस्में ईजाद की गई है|
मसूर की खेती के लिये बिहार की मिट्टी और जलवायु बेहतरीन रहती है| इस राज्य की आवोहवा के हिसाब से मसूर की पंत एल 406, पीएल 639, मल्लिका (के -75), एनडीएल 2, डब्ल्यूबीएल 58, एचयूएल 57, डब्ल्यूबीएल 77, अरुण (पीएल 777-12) आदि किस्मों की खेती करना लाभकारी साबित हो सकता है|
दलहनी फसलों की खेती के लिये मध्य प्रदेश एक बड़ा उत्पादक राज्य बनकर उबरा है| यहां के किसान हाड़ तोड़ मेहनत करके दलहनी फसलें उगा रहे हैं| इसकी मलाइका (K-75), आईपीएल-81 (नूरी), जेएल-3, आईपीएल-406, एल-4076, आईपीएल 316, डीपीएल 62 (शेरी) आदि किस्मों की बुवाई करके बंपर उपज हासिल कर सकते हैं|
उत्तर भारत में मसूर की खेती के लिये पीएल-639, मलिका (K-75), एनडीएल-2, डीपीएल-62, आईपीएल-81, आईपीएल-316, एल-4076, एचयूएल-57, डीपीएल-15 आदि किस्में मिट्टी और जलवायु के अनुरूप बेहतर उत्पादन देती हैं| इनकी बुवाई से पहले ठीक प्रकार बीजोपचार और खेत में जल निकासी का प्रबंधन कर लेना चाहिये|
देवभूमि उत्तराखंड के लिये भी कृषि वैज्ञानिकों ने मसूर की कई उन्नत किस्में ईजाद की हैं, जिसमें वीएल-103, वीएल-507, वीएल-129, वीएल-514, वीएल-133, पीएल-5, पीएल-6, आदि किस्में मौसम और मिट्टी केअनुरूप अच्छी उपज देती हैं|
हरियाणा और पंजाब के किसानों के लिये भी मसूर की खास किस्में मौजूद हैं, जिनमें पंत एल-4, डीपीएल-15 (प्रिया), सपना, एल-4147, डीपीएल-62 (शेरी), पंत एल-406, पंत एल-639 के साथ-साथ पीएल-639, एलएल-147, एलएच-84-8, एल-4147, आईपीएल-406, एलएल-931 और पीएल 7 किस्में मिट्टी और जलवायु में फिट बैठती हैं|