पूर्वोत्तर भारत के प्रवेश द्वार सिलीगुड़ी में अब हिमाचल प्रदेश व कश्मीर जैसे बड़े, लाल, खुशबूदार व मीठे सेब पैदा हो सकेंगे। इस उम्मीद की एक नई किरण दिखी है। यहां सेब की खेती का “ट्रायल” सफल हुआ है। इससे, उत्तर बंगाल में सेब की वाणिज्यिक खेती के इच्छुक किसानों में खुशी की लहर फैल गई है।
सिलीगुड़ी शहर के कॉलेज पाड़ा निवासी, पेशे से पशु आहार व्यवसायी व कृषि प्रेमी अजित पाल ने अपने घर की छत पर बागबानी में जो इसका ट्रायल किया था वह रंग लाया है। एक साल की मेहनत के बाद अब उनके घर की छत पर गमले में लगाए गए पौधे से जो सेब फला है वह रंग, रूप, आकार, सुगंध व स्वाद किसी भी मामले में हिमाचल व कश्मीर के सेब से कम नहीं है। इससे न सिर्फ वह अकेले गदगद हैं बल्कि यहां कृषि जगत से जुड़े सैकड़ों लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। उन लोगों में एक नई उम्मीद जगी है।
उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय (एनबीयू) के सेंटर फॉर फ्लोरीकल्चर एंड एग्रो बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) परिवार की खुशी का भी ठिकाना नहीं है। कोफाम के तकनीकी विशेषज्ञ अमरेंद्र पांडेय कहते हैं कि हमें इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार था। यह सचमुच इतनी खुशी की बात है कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि ‘कोफाम’ व नेशनल इन्नोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ) के संयुक्त तत्वावधान में सिलीगुड़ी महकमा में पांच-छह किसानों को पांच-छह पौधे दिए गए थे। यह हमारा एकदम शुरुआती ट्रायल का चरण था, जो कि सफल रहा। सिलीगुड़ी के काॅलेज पाड़ा में अजीत पाल के घर पर एचआरएमएन-99 प्रजाति के सेब की खेती का ट्रायल सफल हुआ है।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश के पनियाला निवासी अभिनव क्रांतिकारी किसान हरीमन शर्मा की सेब पौधशाला द्वारा इस नई प्रजाति के सेब एचआरएमएन-99 को विकसित किया गया था। यह नाम भी उन्हीं के नाम से मंसूब है। यह नई प्रजाति इस प्रकार विकसित की गई है कि गर्म प्रदेशों में भी सेब की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। उसका सफल ट्रायल अब सिलीगुड़ी में भी संभव हुआ है।
इतना ही नहीं, सिलीगुड़ी के निकट गजलडोबा में भी, पेशे से व्यवसायी व कृषि प्रेमी नीलांजन पाल के यहां भी सेब की खेती का ऐसा ट्रायल सफल हुआ है। वहां सेब की वाणिज्यिक खेती के लिए प्रसिद्ध ‘अन्ना’ व ‘डोरसेट’ प्रजाति के सेब का ट्रायल किया गया था जो कि सफल रहा। सिलीगुड़ी महकमा के ही नक्सलबाड़ी प्रखंड में भी सेब की खेती का ऐसा ट्रायल किया गया था। मगर, वहां आंधी-तूफान, बारिश व अन्य कारणों से वह सफल नहीं हो पाया। वहां सेब के पौधों की समुचित देखभाल भी न हो पाना इसका एक मुख्य कारण रहा। खैर, सिलीगुड़ी व गजलडोबा में मिली सफलता अपने आप में बहुत मायने रखती है। इससे आगामी दिनों पूरे उत्तर बंगाल में जमीनी स्तर पर सेब की बड़े पैमाने की वाणिज्यिक खेती की राहें खुली हैं।
इस सफल ट्रायल से सिलीगुड़ी समेत पूरे उत्तर बंगाल के प्रयोगधर्मी किसानों के चेहरे पर नई चमक आ गई है। उन्हें उम्मीद की एक नई किरण दिखने लगी है। कई किसानों ने कहा कि इस दिशा में अगर शासन-प्रशासन का अपेक्षित सहयोग मिला तो वह दिन दूर नहीं जब सिलीगुड़ी समेत पूरा उत्तर बंगाल भी सेहत के खजाने यानी स्वादिष्ट सेब उत्पादन का एक केंद्र हो जाएगा।