हरियाणा में धान की खेती के रकबे में हुई कमी को लेकर एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में 36 लाख एकड़ में धान की खेती हुई थी| जो 2019 में बढ़कर 39 लाख एकड़ हो गई| वहीं वर्ष 2020 में याेजना के तहत धान की खेती के रकबे में मामूली कमी हुई और रकबा घटकर 38 लाख एकड़ हो गया है| वहीं 2021 में रिकॉर्ड कमी के बाद धान की खेती का रकबा 34 लाख एकड़ रह गया|
विभाग ने 400 एकड़ क्षेत्रफल पर दलहन की प्रदर्शन-खेती कराने की तैयारी कर चुका है। इसके लिए किसी एक छोटे खेत का चयन किया गया। विशेषज्ञों की मौजूदगी में बुवाई की गई। उसके बाद नियमित रूप से विशेषज्ञ फसल की देखभाल की गई। मानक के अनुसार उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग किया गया। उसके बाद किसानों की मौजूदगी में उसकी गहाई की गई, जिससे किसान जान सकें कि मानक के अनुसार पैदावार लेने के लिए किस तरह का कृषि प्रबंधन आवश्यक है।
इसके तहत विशेषज्ञों का प्रयास फसलों में आने वाली लागत को कम कराना है, जिससे किसानों का फसलों पर खर्च कम आए और वह ज्यादा मुनाफा कमा सकें। दलहन की फसलों में धान से कम पानी की जरूरत होती है|
चण्डीगढ़ से प्रकाशित अख़बार ‘द ट्रिब्यून’ की एक खबर के मुताबिक, 2020 की तुलना में दलहन (मूंग, अरहर और उड़द) के रकबे में 2021 खरीफ सीजन 74 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है| वहीं उत्पादन 67 प्रतिशत बढ़ा है| अकेले मूंग की खेती का रकबा 1,13,521 एकड़ से बढ़कर 1,98,438 एकड़ हो गया है, जिसमें 84,917 एकड़ की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की गई है|
कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, इस बार किसानों ने 98,000 एकड़ क्षेत्र में धान और बाजरे की जगह वैकल्पिक फसलों की खेती की थी| खरीफ सीजन में दलहन और तिलहन का रकबा सबसे अधिक दक्षिणी हरियाणा में बढ़ा है, जिसे बाजरा पट्टी माना जाता है|