हरियाणा में बागवानी में अव्वल सिरसा जिले के किन्नू की मिठास पूरे भारत तक फैल गई है। दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, अहमदाबाद, कोलकाता समेत देश के हर बड़े शहर में सिरसा के किन्नू की मांग बढ़ने के कारण उत्पादक किसानों को न सिर्फ फसल बेचने की परेशानी से निजात मिली है बल्कि उनको अच्छे भाव भी मिल रहे हैं। बागवानी किसानों के लिए फायदे की खेती साबित हो रही है।
यह सब संभव हो सका है कि किसानों का खेती के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने, कंपनी बनाकर काम करने और फसल को बाजार से जोड़ने से। कंपनी बनने से पहले यहां के किसानों को मजबूरी में औने-पौने भाव में अपनी फसल को मंडियों में बेचना पड़ता था। कंपनी बनने के बाद किसान किन्नू की ग्रेडिंग, वैक्सिंग और पैकिंग कर उसको देश के विभिन्न बाजारों में पहुंचाते हैं और अच्छी कीमत पर फसल बेचकर मुनाफा कमाते हैं।
कंपनी के सीईओ और प्रगतिशील किसान मनोज सिहाग बताते हैं कि किन्नू की अधिकता होने पर उम्मीद के अनुरूप कीमत नहीं मिल पाती थी। लोकल मंडी पर निर्भरता और खपत कम होने के कारण किसानों को औने-पौने भाव में फसल बेचनी पड़ती थी। एक बार तो फसल को पशुओं को खिलाना पड़ा था। इस समस्या के समाधान के लिए तीन साल पहले प्रगतिशील किसानों की एक टीम ने खारी सुरेरा फार्मर प्रोड्यूसर नाम से कंपनी बनाई।
सन 2020 में पांच लोगों से शुरू हुई इस कंपनी में फिलहाल 200 से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं। गांवों का क्लस्टर बनाकर इन किसानों को जोड़ा गया है। इस काम में बागवानी विभाग के अधिकारियों ने भी मदद की। अब यहां के किसान दूसरे राज्यों की मंडियों में किन्नू भेजकर अच्छे दाम प्राप्त कर रहे हैं। पहले एक दो गांवों में किन्नू की खेती होती थी, अब गांव जमाल, अबूबशहर, गुड़ियाखेड़ा, बकरियांवाली, बनवाला, रिसालियाखेड़ा, गोरिवाला, मोजगढ़, लंबी, आसाखेड़ा, तेजाखेड़ा व चौटाला सहित अनेक गांव में किन्नू का उत्पादन होता है।
सीजन शुरू होते ही कंपनी किन्नू की ग्रेडिंग, वैक्सिंग और पैकिंग का काम शुरू कर देती है और फसल को देश की अलग-अलग मंडियों तक पहुंचाने का काम कंपनी करती है। वर्ष 2022 में 1400 मीट्रिक टन के करीब किन्नू देश की अलग-अलग मंडियों में भेजा गया था। वहीं वर्ष 2021- 2022 में फसल कम होने के कारण पांच हजार से मीट्रिक टन ही किन्नू बाहर भेजा गया था। क्योंकि माल कम होने के कारण जिले में किन्नू के अच्छे रेट मिल गए थे। इस साल भी किन्नू की फसल अच्छी है तो माल बाहर भेजा जाएगा।
मनोज सिहाग बताते हैं कि 20 नवंबर से पांच मार्च तक किन्नू के लिए पीक सीजन होता है। इस बीच लगभग डेढ़ माह तक हरियाणा में ठंड पड़ती है और किन्नू की खपत कम हो जाती है। कंपनी बनने के बाद किसान स्थानीय बाजार के भरोसे नहीं हैं। इस सीजन में माल कोलकाता जैसे उन शहरों में भेजा जाता है, जहां सर्दी कम पड़ती है।
किन्नू उत्पादक किसानों का कहना है कि मौसम सही रहे तो किन्नू की क्वालिटी अच्छी रहती है और दाम भी अच्छे मिल जाते हैं। एक एकड़ में किन्नू की पैदावार 70 से 80 क्विंटल की रहती है। बाहर भेजने पर दो से तीन रुपये प्रति किलो अधिक मिल जाते हैं। यह मार्जिन किसान को एक एकड़ में ही हजारों रुपये का मार्जिन दिला देता है।
सिरसा जिले में किन्नू के बाग बड़े स्तर पर होने के कारण फसल कई बार उम्मीद से ज्यादा हो जाती है। माल ज्यादा होने पर अच्छे भाव नहीं मिलते। जिले में किन्नू पल्प व जूस आदि की इंडस्ट्री हो और इसका जूस बनाकर किसान बेचें तो उनकी आमदनी कई गुना बढ़ सकती है। लोगों को इससे रोजगार मिलेगा।