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आई.ए.एस से भी कठिन है नागा तंगतोडा़ साधु बनने की प्रक्रिया

शैव और वैष्णव परंपरा के साधु संत, नागा साधु और साध्वियों का। प्रयागराज महाकुंभ में जमावड़ा है। सभी की छावनियों में परंपरा अलग है। वैराग्य के सभी स्वरूप महाकुंभ में हैं जो आयोजन को दुर्लभ, दिव्य और सनातन की परंपरा से त्रिवेणी के तटों पर जीवन्त रूप दे रहे हैं।

आपको बता दें महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है लेकिन हर किसी के लिए नागा बनना संभव नहीं है। नागा साधु बनने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संन्यासी जीवन जीने की प्रबल इच्छा होनी चाहिए। सनातन परंपरा को आगे बढ़ाने और हर हाल में धर्म की रक्षा करने के लिए अलग-अलग संन्यासी अखाड़ों में हर महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

संपूर्ण भारत वर्ष में 13 ऐसे अखाड़े हैं जहां संन्यासियों को नागा बनाया जाता है, लेकिन इन सभी में जूना अखाड़ा ऐसा स्थान है जहां सबसे ज्यादा नागा साधु बनाए जाते हैं। नागाओं को सामान्य दुनिया से हटकर बनना और असामान्य जीवन व्यतीत करना पड़ता है इसलिए जब भी कोई व्यक्ति नागा बनने के लिए अखाड़े में प्रवेश करता है तो उसे विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है… विभिन्न कसौटियों का सामना करना पड़ता है।

नागा साधु –जिस अखाड़े में व्यक्ति प्रवेश करता है उस अखाड़े के प्रबंधक पहले ये पड़ताल कर लेते हैं कि आखिर वह व्यक्ति नागा क्यों बनना चाहता है। व्यक्ति की पूरी पृष्ठभूमि देखने और उसके मंतव्यों को जांचने के बाद ही उसे अखाड़े में शामिल किया जाता है। अखाड़े में शामिल होने के 3 साल तक उसे अपने गुरुओं की सेवा करनी होती है, सभी प्रकार के कर्म कांडों को समझना और उनका हिस्सा बनना होता है।

आईएएस में शामिल होने की तैयारी–जब गुरु को अपने शिष्य पर पूर्ण विश्वास हो जाता है अब वह उसे महाकुंभ के दौरान नागा बनने की प्रक्रिया में शामिल करता है। इस प्रक्रिया के तहत ही एक सामान्य व्यक्ति को संन्यासी से महापुरुष बनाया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन यह सच है कि यह तैयारी आई ए एस में शामिल होने की तैयारी से किसी भी रूप में कम नहीं होती।

महाकुंभ के दौरान उन्हें गंगा में 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं और उनके पांच गुरु निर्धारित किए जाते हैं। नागा बनने वाले साधुओं को भस्म, भगवा वस्त्र और रुद्राक्ष की माला दी जाती है। महापुरुष बन जाने के बाद उन्हें अवधूत बनाए जाने की तैयारी शुरू होती है।अखाड़ों के आचार्य अवधूत बनाने के लिए सबसे पहले महापुरुष बन चुके साधु का जनेऊ संस्कार किया जाता है और उसके बाद उसे संन्यासी जीवन की शपथ दिलवाई जाती है। इस दौरान नागा बनने के लिए तैयार व्यक्ति से उसके परिवार और स्वयं उसका पिंडदान करवाया जाता है। इसके बाद बारी आती है दंडी संस्कार की और फिर होता है पूरी रात ॐ नम: शिवाय का जाप।
नागा बनने की प्रक्रिया–

रात भर चले जाप के बाद, भोर होते ही व्यक्ति को अखाड़े ले जाकर उससे विजया हवन करवाया जाता है और फिर गंगा में 108 डुबकियों का स्नान होता है। गंगा में डुबकियां लगवाने के बाद उससे अखाड़े के ध्वज के नीचे दंडी त्याग करवाया जाता है। ऐसे संपन्न होती है नागा बनने की प्रक्रिया।
नागाओं के नाम–

महाकुंभ भारत के चार शहरों, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और इलाहाबाद में लगता है इसलिए नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया भी इन्हीं चार शहरों में होती है। नागा साधुओं का नाम भी अलग-अलग होता है जिससे कि यह पहचान हो सके कि उन्होंने किस स्थान से दीक्षा ली है। जैसे कि प्रयागराज के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक में दीक्षा वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है।

नागा साधु बनने के लिए ब्रह्मचर्य के नियम का पालन करना अति आवश्यक होता है। इस प्रक्रिया में 6 महीने से लेकर 1 वर्ष तक का समय लग सकता है। इस परीक्षा में सफलता पाने के लिए साधक को 5 गुरु से दीक्षा प्राप्त करनी होती है। शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश द्वारा, जिन्हें पंच देव भी कहा जाता है।
इसके बाद व्यक्ति सांसारिक जीवन का त्याग कर अध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करते हैं और स्वयं का पिंडदान करते हैं। नागा साधु भिक्षा में प्राप्त हुए भोजन का सेवन करते हैं। अगर किसी दिन साधु को भोजन नहीं मिलता है, तो उन्हें बिना भोजन के रहना पड़ता है।

नागा साधु जीवन में सदैव वस्त्र धारण नहीं करते हैं, क्योंकि वस्त्र को आडंबर और सांसारिक जीवन का प्रतीक माना जाता है। इसी वजह से वह अपने शरीर को ढकने के लिए भस्म लगाते हैं। सबसे अहम बात बता दें कि नागा साधु सोने के लिए भी बिस्तर का प्रयोग नहीं करते हैं।

नागा साधु समाज के लोगों के सामने सिर नहीं झुकाते हैं और न ही जीवन में कभी भी किसी की निंदा नहीं करते हैं। लेकिन वह वरिष्ठ सन्यासियों से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सिर झुकाते हैं। जो व्यक्ति इन सभी नियमों का पालन करता है। वह नागा साधु बनता है।

 

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