हिमाचल के बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों ने सेब की एक स्वदेशी किस्म बड़ म्यूटेशन की पहचान की है। खास बात है कि सेब की यह किस्म सामान्य किस्मों से दो माह पहले फसल देगी। इसका रंग भी सुर्ख लाल होगा। इस किस्म के सेब में रंग आने के लिए धूप की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी और धुंध-कम धूप वाले क्षेत्रों में आसानी से तैयार हो सकेगा। मौजूदा समय में जो सेब तैयार होता है, उस पर कम धूप और धुंध का काफी प्रभाव है। नई किस्म पर नौणी विवि चार साल से शोध कर रहा है।
हिमाचल के बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों ने सेब की एक स्वदेशी किस्म बड़ म्यूटेशन की पहचान की है। खास बात है कि सेब की यह किस्म सामान्य किस्मों से दो माह पहले फसल देगी। इसका रंग भी सुर्ख लाल होगा। इस किस्म के सेब में रंग आने के लिए धूप की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी और धुंध-कम धूप वाले क्षेत्रों में आसानी से तैयार हो सकेगा। मौजूदा समय में जो सेब तैयार होता है, उस पर कम धूप और धुंध का काफी प्रभाव है। नई किस्म पर नौणी विवि चार साल से शोध कर रहा है।
वांस डिलीशियस किस्म की तुलना में अगली कलरिंग स्ट्रेन की खासियत है कि इसमें फल दो महीने पहले ही पूर्ण रूप से गहरे लाल रंग में विकसित हो जाता है। जबकि इसकी मदर किस्म वांस डिलीशियस की सतह पर धारदार रंग विकसित होता है। इसमें सामान्य किस्मों से पहले ही फूल आ जाते हैं। अभी प्रदेश में जो सेब पैदा होता है, उसमें फ्लावरिंग के बाद फसल तैयार होने में करीब 90 से 120 दिन लगते हैं। बताया कि इस किस्म के व्यावसायिक बागवानी में सफल होने की उम्मीद है। वजह यह है कि इस किस्म का चयन पहले से शीतोष्ण जलवायु में अनुकूलित किस्म से किया गया है। विकसित की जा रही नई किस्म में वातावरण बदलाव को सहन करने की भी क्षमता होगी।
नौणी और विवि के कृषि विज्ञान केंद्रों और अनुसंधान स्टेशनों में बागवानों के लिए फलदार पौधे की वार्षिक बिक्री सोमवार से पहले आओ पहले पाओ के आधार पर शुरू हो गई।
फल रोपण सामग्री की वार्षिक बिक्री के लिए हिमाचल प्रदेश और आसपास के राज्यों के किसान विश्वविद्यालय और क्षेत्रीय केंद्रों पर एकत्र हुए। इस बिक्री के दौरान किसानों द्वारा सेब, नाशपाती, खुमानी, आड़ू, नेक्टराइन, चेरी, कीवी, अखरोट, अनार, प्लम, जापानी फल और बादाम आदि की विभिन्न किस्मों को खरीदा गया। बिक्री के पहले दिन 782 किसानों ने नौणी में विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में तीन नर्सरियों कंडाघाट, रोहड़ू में कृषि विज्ञान केंद्र और मशोबरा, बजौरा और शारबो (किन्नौर) में अनुसंधान केंद्रों से विभिन्न फलों की किस्मों के 22,324 से अधिक पौधे खरीदे। इस वर्ष किसानों ने फलों की फसलों के विविधीकरण के प्रति रुचि दिखाई है।
इस वर्ष किसानों ने फलों की फसलों के विविधीकरण के प्रति रुचि दिखाई है। यह बिक्री के दौरान भी दिखाई दी, जहां सेब की किस्मों के साथ-साथ जापानी फल, अखरोट, कीवी और अन्य गुठलीदार फलों की मांग में वृद्धि देखी गई। इस वर्ष विश्वविद्यालय और क्षेत्रीय स्टेशनों पर बिक्री के लिए उपलब्ध पौधों की कुल संख्या 2.72 लाख से अधिक है। इस बिक्री के दौरान किसानों को सेब, कीवी, अनार, खुमानी, आड़ू, नेक्टराइन, चेरी, अखरोट, नाशपाती, प्लम आदि की विभिन्न किस्में उपलब्ध करवाई जाएंगी। सेब के लगभग 50000 क्लोनल रूट स्टॉक भी उपलब्ध होंगे। आने वाले दिनों में यह बिक्री जारी रहेगी।