बदलते मौसम और आबोहवा में खेती किसी समस्या से कम नहीं है | इसने न जाने कितनी और समस्याओं को हम सबके सामने रख दिया है | जिसमें खाद्य सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है | ऐसे में केंद्र ने लोकसभा में बताया कि विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में खेती के लिए लहसुन की 14 किस्मों की पहचान की गई है |
लहसुन का जेनेटिक परीक्षण किया जा रहा है | आईसीएआर-प्याज और लहसुन अनुसंधान निदेशालय, पुणे और राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान और विकास फाउंडेशन, नासिक द्वारा भारत में विभिन्न बढ़ते मौसमों और कृषि-जलवायु परिस्थितियों में सुधार पर नियोजित शोध किया जा रहा है |
लहसुन की इन किस्मों में से ‘भीमा पर्पल’ और ‘जी282’ की पहचान खरीफ के दौरान महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु (ऊटी) में खेती के लिए की गई है, जबकि ‘गडग लोकल’ लैंड्रेस केवल कर्नाटक के लिए आदर्श है |
लहसुन ‘जी282’ और ‘भीमा पर्पल’ ने खरीफ सीजन में प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल लहसुन का उत्पादन किया | महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में खरीफ (40-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) के साथ-साथ रबी (60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) फसलों के लिए उपयुक्त ‘जी389’ नामक लहसुन की उन्नत प्रजनन लाइन विकसित की गई है |
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने रबी सीजन में उपजने वाले लहसुन को खरीफ फसल चक्र के लिए उपयुक्त बनाने के लिए ठोस कदम उठाया है |
उन्होंने कहा कि विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में लहसुन की 14 किस्मों की पहचान की गई है, जिनमें लहसुन की 11 किस्में शामिल हैं | मैदानी इलाकों के लिए और तीन पहाड़ी इलाकों के लिए | “गदग स्थानीय” नामक एक अन्य भूमि जाति ने कर्नाटक में स्थानीय अनुकूलन क्षमता हासिल कर ली है |