बरसात का मौसम ख़त्म होने के साथ आलू, मूली और गाजर की बुवाई शुरु हो जाती है | गाजर का उन्नत बीज ज्यादा उत्पादन देता है| गाजर के पत्ते पशुओं का दूध बढ़ाने वाला चारा भी है | उन्नत बीज स 100 दिन में गाजर को बाजार भेजना संभव होता है|
भारत में मुख्यत: दो तरह के गाजर की खेती होती है, यूरोपियन और एशियन| गाजर की खेती से भी अच्छा मुनाफ कमाया जा सकता है बशर्तें सही किस्म का चयन जरूरी है|
एशियन किस्में: पूसा रुधिरा, पूसा मेघाली, पूसा केशर, हिसार गेरिक, हिसार मधुर, हिसार रसीली, पूसा आसिता, पूसा यमदग्नि, गाजर नं- 29, चयन नं-223, पूसा नयनज्योति, पूसा वसुधा
यूरोपियन किस्में: चैंटनी, नैन्टीज, पूसा यमदागिनी
चैंटनी–
गाजर की ये किस्म 80 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है| आकार में काफी मोटा होता है| इसकी खेती मुख्यत: मैदानी इलाकों में होती है एक हेक्टेयर में 150 क्विंटल तक गाजर निकलता है|
नैनटिस–
इस किस्म की सबसे अच्छी बात ये है कि ये खुशबूदार होती है| फसल लगभग 110 से 120 दिनों में तैयार होती है| मैदानी इलाकों में इसकी खेती नहीं होती| प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक पैदावार होती है|
हिसार रसीली–
गाजर की इस किस्म की बाजार में सबसे ज्यादा मांग रहती है| इसका रंग गहरा लाल, लंबा और पतला होता है| किसानों के बीच भी सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. 30-35 सेंटीमीटर लंबी होती है| फसल 85 से 95 दिनों में तैयार हो जाती है| उत्पादन प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल| रोग प्रतिरोधक भी है|
हिसार मधुर–
ये गाजर की नई किस्म है और किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है| गाजर की लंबाई 25 से 30 सेंटीमीटर तक होती है| उत्पादन 150 से 200 क्विंटल है|
हिसार गेरिक–
इस किस्म को उत्पादन के लिए जाना जाता है. इसका हल्का संतरी होता है| प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 275 है|
पूसा मेघाली–
ये गाजर की अगेती की फसल है| इसे किसान सितंबर में लगाते हैं और ये 100 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है| औसतन पैदावार 250 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है|
पूसा केशर–
ये गाजर की देसी किस्म है| इसके पत्ते छोटे होते हैं| प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 250 क्विंटल तक होती है|
पूसा रुधिर–
इसकी उपज भी लंबी और गहरे लाल रंग की होती है| किसान इसे 15 सितंबर से अक्टूबर के बीच लगाते हैं और ये दिसंबर तक तैयार हो जाती है| प्रति हेक्टेयर उपज 280 से 300 क्विंटल तक होती है|
पूसा आंसिता–
इस किस्म के गाजर का रंग हल्का काला होता है| बुवाई भी सितंबर से अक्टूबर के बीच होती है| फसल 90 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है| उत्पादन प्रति हेक्टेयर लगभग 250 क्विंट होता है|