झारखंड में अभी लगभग 33 लाख टन सब्जियों का सालाना उत्पादन है| जिसमें करीब 18 लाख टन मार्केटिंग सरप्लस के रूप में दूसरे राज्यों में भेजी जाती है| अगले दस सालों में इसे नौ लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाएगा और उत्पादन एक सौ लाख टन से अधिक करने की योजना है| साथ ही साथ सब्जियों के निर्यात निति भी लायी जायगी| कृषि निर्यात नीति का काम पूर्ण कर लिया गया है और जल्द ही लागू भी कर दी जायेगी| कृषकों को उनके उत्पादों के सही दाम दिलाने तथा सही प्लेटफॉर्म दिलाने की दिशा में कृषि विपणन संरचना पर ध्यान दिया जा रहा है| सुदृढ़ीकरण की दिशा में कृषि विपणन विधेयक को दुबारा लागू किया जा रहा है ताकि कृषकों को एक व्यवस्थित स्थान मिले और बिचौलियों से भी छुटकारा मिले. राज्य में अभी 19 विपणन समितियां ई-नाम से जुड़ी हुई|
झारखंड में लगभग तीन लाख हेक्टेयर में मुख्य रूप से शिमला मिर्च, फ्रेंच बींस, बरवटी, टमाटर, गाजर, फूलगोभी, भिंडी की खेती काफी की जाती है| अभी लगभग 33 लाख टन सब्जियों का सालाना उत्पादन है, जिसमें करीब 18 लाख टन मार्केटिंग सरप्लस के रूप में दूसरे राज्यों में भेजी जाती है|
अगले दस सालों में इसे नौ लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाएगा और उत्पादन एक सौ लाख टन से अधिक करने की योजना है| साथ ही साथ सब्जियों के निर्यात निति भी लायी जायगी| कृषि निर्यात नीति का काम पूर्ण कर लिया गया है और जल्द ही लागू भी कर दी जायेगी| इसी संबंध में ‘एक जिला एक उत्पाद’ भी तय किया गया है. इसके तहत कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जायेगा|
सूबे के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख के अनुसार कृषि एवं संबधित क्षेत्र जैसे पशुपालन, डेरी तथा मत्स्य पालन में झारखंड राज्य में पिछले कुछ सालों में प्रगति तो हुई है, किंतु अभी भी राज्य इन क्षेत्रों में पूर्णत: आत्मनिर्भर नहीं हो सका है जबकि संसाधनों की कमी नहीं है| यह राज्य भी कृषि प्रधान राज्य है और करीब 70 फीसदी जनसंख्या कृषि पर ही आधारित है, परंतु सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि भागीदारी साल दर साल घटी है| अतः राज्य में कृषि एवं संबधित क्षेत्र जैसे पशुपालन, डेरी तथा मत्स्य को एक साथ देखने की आवयश्कता है और मौजूद संसाधनों का व्यस्थित उपोग करते हुए दीर्घ अवधि के लिए कार्ययोजना बनाने की जरूरत है| कृषि एवं संबधित क्षेत्र की कार्य योजना राज्य की भौगोलिक संरचना, वातावरण, वर्षा तथा कृषकों की अभिरुचि के अनुसार होनी चाहिए|
दलहनी फसलों को और बढ़ावा देने की जरूरत बताते हुए श्री पत्रलेख ने कहा कि
राज्य की भौगोलिक संरचना, वातावरण दलहन की खेती के लिए बहुत ही उपयुक्त है| यहां पर दलहन की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से करीब 150 किग्रा प्रति हेक्टेयर अधिक है| राष्ट्रीय औसत उत्पादकता करीब 888 किग्रा प्रति हेक्टेयर है| करीब आठ लाख हेक्टेयर पर मुख्य रूप से अरहर, चना, उरद, मूंग, कुल्थी तथा मसूर की खेती की जाती है| अगले दस सालों में दलहन की खेती दुगुना करने की योजना है, जिससे खाद्य एवं स्वस्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी|